रविदास आध्यात्मिक, नैतिक व सामजिक गुरुता के धनी

 

रविदास जयंती 2023 / 05 फरवरी / लेख  

रविदास आध्यात्मिक, नैतिक व सामजिक गुरुता के धनी

फादर डॉ. एम. डी. थॉमस 

निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली

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05 फरवरी 2023 को रविदास जयंती मनायी जा रही है। संत रविदास या रैदास मध्यकाल के एक मशहूर भारतीय संत थे। रविदासिया या रैदासिया पंथ आपके नाम से जाना जाता है। आप जात-पात को लेकर चल रही छुआ-छूत के खिलाफ उठी सबसे बुलंद आवाज़ों में एक थे। रविदास 15वीं शताब्दी में पैदा हुए थे, यह मान्यता है। उत्तर प्रदेश में वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर आपका जन्म-स्थान है। आपका समय ईसवीं सन् 1440 से 1540 माना जाता है।

रविदास एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक और ईश्वर-साधक थे। आपने निर्गुण संप्रदाय या संत परंपरा के संत के रूप में भक्ति आंदोलन को मज़बूत किया। ईश्वर के प्रति असीम प्यार और भक्ति आपकी पहचान थी। समाज के सुधार के साथ-साथ उसकी सामाजिक व आध्यात्मिक बेहतरी को सामने रखकर सटीक कविताएँ आपका खास योगदान रहा। साथ ही, संत रविदास के रचे कुछ 41 लेख व भजन सिख समुदाय के धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में शामिल हैं, यह बड़े श्रेय की बात है।

संत रविदास के नाम पर स्मारक, मंदिर, बाग, घाट, नगर, गेइट, आदि कई जगह पाये जाते हैं। करीब-करीब समूचे भारत में, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, आदि प्रदेशों में ज्यादा भी, माघ महीने के पूर्णिमा के दिन या माघ पूर्णिमा में संत रविदास की जयंती मनायी जाती है। आप की जयंती पर खास तौर पर और भिन्न-भिन्न पर्वों के मौके पर आम तौर पर लोग, खासकर रैदासी संप्रदाय के लोग, आप की प्रेरणादायक कविताओं, दोहों, गीतों और भजनों को तल्लीन होकर गाया करते हैं। संत रविदास के मंदिरों में आरती के साथ-साथ जुलूस भी समारोह का अंग है।

आपके पिता जूते का व्यापार और मरम्मत का काम किया करते थे। इसलिए, ईश्वर के भक्त होकर भी, आपको तथाकथित ऊँची जाति के लोगों के हाथों भेदभाव का शिकार होना पड़ा था। आप अपनी कविताओं के ज़रिये पड़ोसियों से बगैर भेदभाव का व्यवहार करने की नसीहत दिया करते थे। आपके गुरु पंडित शारदा नंद थे, जो रविदास की होनहार और अनोखी शख्सियत से खुश थे। रविदास अपने पारिवारिक पेशे से नहीं जुड़कर​ सामाजिक मामलों में लगे रहते थे, जिसकी वजह से आप घर से अलग भी कर दिये गये थे।     

रविदास ने बेगमपुरा शहर को एक आदर्श समाज के रूप में खड़ा करने में अहम् भूमिका निभायी। आपका नज़रिया यह था कि वहाँ लोग आपस में उँच-नीच का भाव नहीं रखते हुए और बगैर किसी गम, डर व दर्द के तथा अमन-चैन व इन्सानियत से जियें। वहाँ किसी को गरीबी को लेकर ही नहीं, अपनी जाति को लेकर भी, शर्मिंदा होना न पड़े, यह भी आपकी चाह थी। आप अपने लेखन के ज़रिये ऐसी तालीम दिया करते थे।

रविदास मीराबाई के आध्यात्मिक गुरु के रूप में जाने जाते हैं। मीराबाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तौड़ की रानी थी। रविदास की तालीम से प्रेरित होकर मीराबाई ने रविदास के लिए लिखा था कि ‘गुरु मिलीया रविदास जी’। मीराबाई के दादा रविदास के अनुयायी थे, जिसकी देख-रेख में वह पली और बढ़ी। रविदास की अमिट छाप मीराबाई पर पड़ी, यह रविदास की गुरुता की खूबी है।

एक बार की घटना है। रविदास के एक चेले ने पवित्र नदी गंगा में नहाने की इजाज़त माँगी। रविदास ने कहा, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’। मतलब है, शरीर को आत्मा से पवित्र होने की ज़रूरत है, न किसी तथाकथित पवित्र नदी में नहाने की। अगर मन साफ है, तो हम पूरी तरह से पवित्र हैं, चाहे हम घर में ही क्यों न नहाये। साफ़ है, रविदास के नज़रिये में, कर्मकाण्ड से नहीं, भीतरी साधना से रूहानियत और पवित्रता की साधना होती है।

एक दूसरी घटना है, जिसके तहत उस समय के राजा ने किसी वजह से एक ब्राह्मण को शेर द्वारा मारे जाने का हुक्म दिया। रविदास को इस बात की जानकारी मिली। आप उस ब्राह्मण के पास गये और उसके साथ खड़े होकर उसे बचाया, जिस पर राजा और ब्राह्मण लोग दोनो एक साथ शर्मिंदा हुए। इतना ही नहीं, राजा और बहुतेरे ब्राह्मण लोग रविदास के अनुयायी बने। तथाकथित ऊँच-नीच के भाव के खिलाफ आप भीतर से कितने लगे हुए थे, यह घटना इस बात का सबूत है। 

रविदास ऐसे समाज में रहते थे, जब लोग जाति, रंग, धर्म, लिंग, नज़रिया, मान्यता, रीति-रिवाज़, आदि को लेकर इन्सान-इन्सान में फर्क किया करते थे। तथाकथित निचली जाति के लोगों के साथ हर प्रकार से ज्यादतियाँ की जाती थीं। उन्हें विद्यालय जाना, पढ़ना-लिखना, मंदिर जाना, जनेऊ धारण करना, तिलक लगाना, धोती पहनना, पक्के मकान में रहना, आदि नसीब नहीं था। हर प्रकार की आज़ादी से वंचित होकर समाज के हाशिये पर झोंपड़ियों में गुज़ारा करना आम लोगों की मज़बूरी थी।

रविदास ने बहादुरी के साथ भेद-भाव को झेला ही नहीं, प्यार-मुहब्बत व बराबरी के व्यवहार की ठोस वकालत की। आप कहा करते थे कि इन्सान कर्म से पहचाना जाता है और इसलिए इन्सान को छुआछूत का शिकार बनाना महा जुर्म है। खुदा के सामने सभी इन्सान बराबर है। भाईचारा व सहिष्णुता की भावना से ही सार्थक ज़िंदगी मुमकिन है।

इस प्रकार, नकारात्मक रवैये के खिलाफ सकारात्मक सोच की मुहिम चलाकर आपने लोगों को एक नयी आध्यात्मिक चेतना की ओर जाग जाने का पुरज़ोर इशारा किया ही नहीं, एक नयी सामाजिक परंपरा की इमारत के लिए नींव भी डाली। इन्सान के भीतर नैतिक, आध्यात्मिक  और सामाजिक चेतना को जगाने की दिशा में संत रविदास का योगदान ज़बर्दस्त रहा। भारतीय समाज की बेहतरी के लिए आपका योगदान सदैव अमर रहेगा, इसमें कोई शक नहीं है।

रविदास जयंती 2023 के पुनीत मौके पर ऐसा संकल्प हो कि समाज में इन्सान-इन्सान में फर्क करने वाली कुरीतियाँ हमेशा के लिए खत्म हो जायें। साथ ही, समाज के ज़िम्मेदार और आम लोग एक जुट होकर ऐसी सकारात्मक क्रांति चलायें, जिसके बलबूते हमारा देश व समाज सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक चेतना की ओर चल सके । संत रविदास की जय हो!

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, सामाजिक नैतिकता, सांप्रदायिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

  

 

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