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Showing posts from September, 2022

‘सर्व धर्म संसद’ के कुछ मायने

  ‘ सर्व धर्म संसद’ के कुछ मायने डॉ. एम. डी. थॉमस -----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------                      ‘सर्व धर्म संसद’, शब्द ही नहीं, विचार भी, 1893 में शिकागो में हुए पहले ‘पार्लमेंट ऑफ रिलीजन्स्’ का हिंदी रूपांतर है। धर्म का भीतरी भाव ‘आस्था’ है, जो कि, असल में, धर्म का फल है। इसलिए इसे ‘सर्व आस्था संसद’ कहना बेहतर है। समाज में धर्म या आस्था को लेकर अलग-अलग परंपराओं की अपनी-अपनी पहचान है, उनका अपना-अपना नज़रिया भी। लेकिन, सभी धर्मों या आस्थाओं की मंजिल एक ही है। इस वजह से, सभी धर्मों या आस्थाओं का मिलन एक संसद या सभा के बराबर है। सर्व धर्म संसद, असल में, ‘एक और अनेक’ का मेल है। धार्मिक परंपराओं में कोई एक पूरा सही हो, ऐसा तो नहीं है। कोई पूरा गलत हो, ऐसा भी नहीं है। कुछ सही सभी हैं, कुछ अधूरा भी सभी। यह इसलिए है कि इस दुनिया में कोई भी, कुछ भी, सौ फीसदी नहीं है। पूरा सच सबके परे है। ‘मेरा ईश्वर और आपका ईश्वर’ ऐसा कुछ नहीं है। ईश्वर एक ही है और उसके विविध पहलू होते हैं, समझने के अलग-अलग न

जी उठकर ईसा ने अमरता की राह बनायी

  ईस्टर 2021 / 04 अप्रेल जी उठकर ईसा ने अमरता की राह बनायी डॉ. एम. डी. थॉमस ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ 04 अप्रेल को ईस्टर है, याने ‘पुनरुत्थान पर्व’। यूनानी मूल से इसे ‘पास्का पर्व’ कहा जाता है। ईसाई मान्यता के अनुसार इस दिन ईसा मसीह मरने के बाद तीसरे दिन जी उठे थे। बाइबिल के अनुसार मरने से पहले ईसा ने इस बात की ओर संकेत भी किया था। ईसा जयंती के बाद ईस्टर ही ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा पर्व है।   ईस्टर अपने आप में कोई अलग घटना हो, ऐसा तो नहीं है। ईसा की ज़िंदगी की आखिरी घड़ियों से जुड़ी हुई तीन घटनाएँ होती हैं, जो कि एक दूसरे से जुड़ी हुई है। ‘अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोजन करना और उनके पैर धोना’ पहली घटना है। ‘सलीब पर अपनी जान को पिता परमेश्वर के हाथों सौंपकर मर जाना’ दूसरी घटना है और ‘मुर्दों में से जी उठना या ईस्टर’ तीसरी घटना भी। इन तीनों घटनाओं को ईस्टर की तीन कड़ियाँ कही जा सकती हैं।   तीन दिनों में बिखरी हुई इन तीन घटनाओं को पवित्र गुरुवार, पवित्र शुक्रवार और पवित्र रविवार भी कहा

महिलाओं की भूमिका से देश व समाज बेहतर बने

  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस / 8 मार्च​   महिलाओं की भूमिका से देश व समाज बेहतर बने डॉ. एम. डी. थॉमस ------------------------------------------------------------------------------------------------------- 8 मार्च​ ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के लिए जाना जाता है। 1975 में ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने यह परंपरा शुरू की थी। 1977 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्रों को भी इस परंपरा को निभाने का न्योता दिया गया था। तब से लेकर पूरी दुनिया में इस दिन को महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। ‘महिला समाज में सही मायने में महिला बनकर रहे’, यही इस दिवस का अहम् संदेश है। ‘नर और मादा’ की कल्पना रचनाकार का सबसे अजब करिश्मा है। इन्सान में यह बात अपनी सारी बुलंदियों में पायी जाती है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि नर और नारी एक दूजे के लिए है और आपस में पूरक हैं। जैसे दो हाथ और दो पैर हैं या दो कान और दो आँखें हैं, ठीक वैसे ही नर और नारी एक दूसरे के साथ मिलकर रहें और चलें, बस, यही खुदा की योजना है। कुदरत की इस तहज़ीब का कदर करना इन्सान के लिए बुनियादी कायदा है।   बात यह भी है कि ईश्वर ने इन्स

वंचित वर्ग और मानव अधिकार : ईसाई दृष्टिकोण

  वंचित वर्ग और मानव अधिकार : ईसाई दृष्टिकोण   डॉ . एम . डी . थॉमस --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- 1.       वंचित वर्ग और मानव अधिकार   1.1.       वंचित वर्ग का संदर्भ ‘ वंचित वर्ग ’ मानव समाज का वह वर्ग है जो किसी - न - किसी प्रकार से धोखे में आया हुआ हो या ठगा गया हो। यह कुछ ऐसे लोगों का समूह है जो किसी काम , चीज़ या बात से अलग किया गया हो या रहित हुआ हो। यह वे लोग हैं जो वांछित पदार्थ प्राप्त न कर सका हो या जिसे प्राप्त करने से रोका गया हो। 1 वंचित वर्ग वंचित वर्ग इसलिये है किवह किसी - न - किसी प्रकार के छल का शिकार हुआ है और इस कारण असुविधाओं से ग्रस्त है। वंचित वर्ग में शुमार लोग हाशिये पर सरकाये हुए होकर लगभग सभी मामलों में पिछड़े और कमज़ोर रह गये हैं। दूसरे शब्दों में , वंचित वर्ग जिंदगी की पटरी से उतरा या उतारा हुआ जन - समूह है , जिसके जीवन की ग