अच्छाई की साधना के लिए ज़रस्थु से प्रेरणा ली जाय

 

खोरदाद साल 2022 / 21 अगस्त / लेख 

अच्छाई की साधना के लिए ज़रस्थु से प्रेरणा ली जाय

डॉ. एम. डी. थॉमस 

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21 अगस्त को ‘खोरदाद साल’ का पर्व मनाया जा रहा है। यह पारसी धर्म के प्रवर्तक और नबी ज़रस्थु या ज़ोरोआस्तेर का जन्म दिवस है। पारसी धर्म के अनुयायियों द्वारा इस दिन को पूरी दुनिया में पर्व के रूप में और बड़े चाव से मनाया जाता है। घर की साफ-सफाई, रंगोली, खुशबूदार फूल, जायकेदार खाना, नये-ताज़े कपड़े, विशेष प्रार्थनाएँ, आदि ‘खोरदाद साल’ के पर्व को मनाने के कुछ तौर-तरीके हैं।

ज़ोरोआस्तेर को इरान की पुरानी भाषा अवेस्तन में ‘ज़ारातूश्त्रा’, फारसी में ‘ज़ारादोश्त’ और गुजराती में ‘ज़ारातोश्त’ कहते हैं। ज़रस्थु का समय ईसा पूर्व 6वीं-7वें सदी माना जाता है और इरान की प्राचीन धार्मिक संस्कृति उनके नाम पर चलती है। ज़रस्थु फारस या आधुनिक इरान मूल के थे। आप इरान के एक रूहानी नेता थे, जो कि अपने रूहानी जज़्बातों के लिए जाने जाते थे। पारसी धर्म कुछ हज़ार सालों के लिए फारस के साम्राज्यों का औपचारिक धर्म था। पारसी समुदाय मुख्य रूप से इरान, भारत और अमेरिका में पाया जाता है।

ज़रस्थु के बारे में एक कहानी कही जाती है। कुछ 30 साल की उम्र में जब नदी में अनुष्ठान के तौर पर वे नहा रहे थे, उन्हें एक ‘उजले जीव’ के दर्शन हुए, जो कि भले मन का प्रतीक माना जाता है। ‘अवेस्ता’ पारसी धर्म-ग्रंथ है और ज़रस्थु की तालीमों की मुख्य बातें उसमें पायी जाती हैं। पारसी परंपरा में साल 360 दिनों का होता है। बाकि 5 दिन पूर्वजों को याद करने के लिए हैं, ऐसा माना जाता है।

पारसी धर्म कुछ 4000 साल पहले शुरू हुआ है, ऐसा भी माना जाता है। खैर, दुनिया के सबसे पुराने धर्मो में पारसी धर्म की गिनती है। कुछ विद्वान मानते हैं कि यहूदी, ईसाई और इस्लामी परंपराओं पर पारसी विचारधारा का प्रभाव है। ऐसा भी लगता है कि पारसी परंपरा की कुछ भाषिक बातें वैदिक धर्म से और कतिपय वैचारिक बातें सामी परंपराओं से मेल खाती हैं। पारसी धर्म का वैचारिक, नैतिक और सांस्कृतिक प्रभाव वर्तमान इस्लामिक इरान पर है, ऐसा कहना भी जायज लगता है।

माना जाता है कि आठवीं शताब्दी से लेकर पारसी लोग भारत में आये थे। मुसलमानों के उत्पीडऩ की वजह से उन्हें फारस छोडऩा पड़ा। पारसी लोगों की आबादी इस समय दुनिया में कुछ एक से दो लाख के बीच है, ऐसा माना जाता है, भारत में कुछ 70 हज़ार भी। 19वीं सदी से लेकर आर्थिक व सामाजिक विकास की दिशा में पारसी मूल के लोग भारत में अग्रणी रहे, जैसे टाटा, गोदरेज, वाडिया, आदि। उनका योगदान बेमिसाल रहा है, ऐसा कहने में अतिशयोक्ति कतई नहीं लगती है।

मध्यकालीन फारसी साहित्य में ‘साओश्यंता’ की कल्पना है, जो कि ‘सबका भला करने वाला’ और अच्छों के साथ-साथ आखिरी में बुरों को भी अहुरा मज़दा के साथ मेल कराने वाला है। यही ‘साओश्यंता’ आगे चलकर यहूदी व ईसाई मतों में ‘मसीहा’ की अवधारणा के रूप में तब्दील हुई है, यहूदी परंपरा में भविष्य के रूप में और ईसाई परंपरा में वर्तमान के रूप में।

पारसियों में परंपरावादी और सुधारवादी दो शाखाएँ हैं। परंपरावादी ‘अवेस्ता और गाथा’ को ही प्रामाणिक मानते हैं। सुधारवादी अवेस्ता और गाथा के साथ-साथ ‘मध्यकालीन फारसी साहित्य’ को भी प्रामाणिक मानते हैं। परंपरावादी अपनी प्रजाति की जैवशास्त्रीय शुद्धता पर यकीन करते हैं, जबकि सुधारवादी दर्शन और नैतिकता को लेकर चलते हैं।

तजिकिस्तान सरकार की गुज़ारिश पर युनेस्को ने साल 2003 को ‘पारसी संस्कृति का 3000वाँ साल’ के रूप में घोषित किया। यह बात पारसी समुदाय के लिए बड़े अंगीकार की बात रही है। साल 2011 में तेहरान मोबेड्स अंजुमन ने पारसी समुदाय में महिला पादरियों को दीक्षा देने लगे। इस बात को पारसी समुदाय में तरक्की की निशानी के रूप में मानी जाती है।

पारसी धर्म एक ईश्वर में विश्वास करता है। पारसी विश्वास द्वैतवादी विचाधारा पर टिका हुआ है। पारसी लोग ईश्वर को ‘अहुरा मज़दा’ कहते हैं, जो कि ‘ज्ञान, प्रज्ञा, रौशनी और अच्छाई’ का प्रतीक है। अहुरा मज़दा को किसी ने बनाया नहीं, बल्कि उसने दुनिया को बनाया था। पारसी प्रार्थनाएँ अक्सर अहुरा मज़दा की पुकार और उसके गुणों की जयकार होती हैं।

अहुरा मज़दा से निकलने वाली आध्यात्मिक जीवन शक्ति को ‘अशा’ कहते हैं, जो कि ब्रह्माण्डीय व्यवस्था और सच्चाई का प्रतीक है। यह इस दुनिया में मौज़ूद ‘द्रुज’ या झूठ व फरेब की ताकतों के खिलाफ है। ‘अशा’ ‘स्पेंटा मैन्यू’ या रचनात्मक आत्मा या भावना’ है, जबकि ‘द्रुज’ ‘अंग्रामैन्यू’ या ‘हानिकारक आत्मा या भावना’ है। पारसी लोग अच्छाई और बुराई को मानते हैं। वे अच्छाई की आखिरी जीत पर भी विश्वास करते हैं।

अच्छाई की ताकत को ‘मज़दा’ के रूप में जीवन का केंद्र बनाने पर पारसी धर्म को ‘मज़दावाद’ भी कहते हैं। उसे ‘मज़दायश्ना’ भी कहते हैं, जिसका अर्थ ‘उपासना’ या ‘भक्ति’ है। ‘अच्छे विचार, अच्छी बातें और अच्छे कार्य’ पारसी जीवन-दृष्टि, धर्म-संहिता और नैतिकता का निचौड़ है। यह सूत्र ‘अशा’ की तीन-आयामी रूप है। इसे फारसी में ‘हुमाता, हुक्स्ता और हुवर्ष्ता’ कहते हैं। इससे खुशी फैलती है।

‘खोरदाद साल या ज़रस्थु का जन्मदिवस 2022’ के पुनीत मौके पर ऐसा संकल्प हो कि अच्छाई को ईश्वर समझते हुए और ईश्वर को अच्छाई समझते हुए जीवन में ‘अच्छे विचार, अच्छी बातें और अच्छे कार्य’ पर ज़ोर दिये चलेे। साथ ही, लोग धर्म को व्यावहारिक बनाकर सामाजिक जीवन की बेहतरी और गुणवत्ता की ओर समर्पित रहें। खोरदाद साल मनाने की सार्थकता, बस इसी में निहित है।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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