योग ज़िंदगी और ईश्वर को एक-साथ साधने का माध्यम

 

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस / 21 जून 2022 / लेख

योग ज़िंदगी और ईश्वर को एक-साथ साधने का माध्यम

डॉ. एम. डी. थॉमस

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21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया जाता है। इसे ‘विश्व योग दिवस’ भी कहते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में इस संदर्भ में 11 दिसंबर 2014 में प्रस्ताव पारित हुआ था। इस प्रस्ताव को 117 सदस्य देशों का समर्थन मिला था और यह निर्णय 2015 में प्रभाव में भी आया। पहले विश्व योग दिवस पर 47 इस्लामी देशों को मिलाकर 192 देशों में योग का आयोजन किया गया था।

‘विश्व योग दिवस’ को यादगार बनाने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2015 में 10 रुपये का सिक्का जारी किया। इसी दिशा में, संयुक्त राष्ट्र संघ के डाक विभाग ने भी 2017 में कई योगासनों को पेश करते हुए 10 डाक टिकट जारी किये। योग को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने के लिए भारत के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ-साथ दुनिया के ज्यादातर देशों व समुदायों से मिला समर्थन ‘सदभाव’ की बड़ी निशानी के रूप में समझा जाना चाहिए।

पहले ‘विश्व योग दिवस’ पर दिल्ली के राजपथ पर 21 योगासनों का प्रदर्शन किया गया। 35 मिनट के इस कार्यक्रम में भारत के 35985 लोगों ने भाग लिया। इस प्रदर्शन में 84 देशों के प्रतिनिधि भी मौज़ूद थे। एक जगह पर सबसे अधिक लोगों द्वारा तथा सबसे अधिक देशों के लोगों द्वारा योग करने पर भारत ने ‘गिनीज़ बुक ऑफ वेल्ड रिकार्ड्स’ में दो विश्व रिकॉर्ड एक साथ हासिल किए।

इस दिन को योग दिवस के रूप में तय करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में पेश किया गया तर्क यह है कि भारतीय गणना के अनुसार ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूरज दक्षिणायन हो जाता है। 21 जून साल का सबसे बड़ा दिन है। इस दिन सूरज का उदय जल्दी होता है, सूरज ढलता भी देर से। इसलिए विश्व योग दिवस के लिए 21 जून ही सबसे उचित है। इस तर्क को संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में मंजूर भी किया गया।

महर्षि ‘पतंजलि’ को योग दर्शन के संस्थापक मानने की परंपरा है। ईसा पूर्व 500 और ईसवी सन् 400 के बीच पतंजलि ने इसे संयोजित और संगठित किया था। 19-20 सदी के मशहूर योग गुरु और विद्वान तिरुमलाई कृष्णमाचार्य ‘आधुनिक योग के पिता’ भी माने जाते हैं। पतंजलि के अनुसार योग के आठ सूत्र होते हैं, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इस अष्टांग योग को ही ‘राज योग’ भी कहते हैं। भगवद्गीता के अनुसार योग तीन प्रकार के होते हैं -- ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग।

‘योग’ शब्द संस्कृत के धातु ‘युज’ से बना है। इसका मतलब है ‘जुड़ना, जोड़ना, मिलाना, बाँधना’, आदि। योग वह ज़रिया है जिसके सहारे इन्सान खुद से, ईश्वर से, समाज से, इन्सानियत से और जि़ंदगी से एक साथ जुड़ता और बँधता है। ‘आत्मा का परमात्मा’ से या ‘इन्सान का दिव्य चेतना’ से मिलन योग का भाव है। शरीर की कसरत ज़रिया है। शरीर, मन और आत्मा की साझी साधना से योग अपने आप में ‘जीवन-साधना’ ही है। 

योग अनुशासन का एक बेनज़ीर तरीका है। यह शरीर के विविध अंगों के बीच अनुशासन है। यह शरीर, मन और आत्मा के बीच भी अनुशासन है। यह व्यक्ति और समाज के बीच के साथ-साथ इन्सान और ईश्वर के बीच भी अनुशासन है। साथ ही, योग अपने भीतर ‘चेतना’ को जगाता है। यह निजी स्तर पर ‘आत्मिक चेतना’ है,  समाज के स्तर पर ‘सामाजिक चेतना’ भी। यह समूची दुनिया के स्तर पर ‘विश्व चेतना’ या ‘सार्वभौम चेतना’ है। निचौड़ में, योग इन्सानी और ईश्वरीय चेतना का दिव्य संगम है।

योग में ‘ध्यान’ की अहम् भूमिका है। असल में, ध्यान एक मानसिक प्रक्रिया है और उसमें एकाग्रता होती है। ध्यान से मन स्थिर होता है। योग शरीर और मन की मिली-जुली प्रक्रिया है। योग से भीतरी और बाहरी जगत में ही नहीं, पूरे कायनात के साथ ताल-मेल स्थापित होता है। योग में आसन, प्राणायाम और ध्यान तीनो होते हैं। कुल मिलाकर, ध्यान को योग का अंग माना जा सकता है।

कहने की ज़रूरत नहीं है कि योग व्यायाम का सबसे कारगर ज़रिया है। योग से शरीर को व्यायाम मिलता ही है। लेकिन, शरीर, दिमाग, दिल और आत्मा को एक साथ संतुलित करने में योग का कोई मुकाबला नहीं है। ‘सकारात्मक सोच’ विकसित करने और ‘स्वस्थ जीवन शैली’ बनाये रखने के लिए योग बहुत मददगार होते हैं। योग से शारीरिक और मानसिक समस्याओं से निजात भी मिलता है। आजकल के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन परिस्थितियों में योग बेहद ज़रूरी है।

धर्म, मज़हब, आस्था, विचारधारा, आदि को लेकर योग को ‘हमारा-तुम्हारा’ या ‘इसका-उसका’ करना कदापि ठीक नहीं है। योग का कोई धर्म नहीं होता। इसका ईश्वर की किसी कल्पना से भी कोई लेना-देना नहीं है। किसी खास धर्म के कुछ मंत्र का उच्चारण भी ज़रूरी नहीं है। इसलिए योग पर किसी धर्म का ठप्पा लगाना जायज नहीं है। योग भारतीय जीवन-दृष्टि से उभरी यह परंपरा है, जो कि धर्म-निरपेक्ष तौर पर सबके लिए फायदेमंद है। इसलिए, करीब-करीब सभी धर्म-समुदायों व देशों में योग के विशेषज्ञ, गुरु और ज़बर्दस्त अभ्यासी मिलते हैं।

असल में, शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य और शांति के प्रतीक के रूप में योग जाना जाता है। फिर भी, भारत में काफी अशांति और अस्वास्थ्य पाये जाते हैं। मन और शरीर तथा विचार और आचार की एकता भी योग की पहचान है। फिर भी, नैतिक मूल्यों की किल्लत के साथ-साथ अनुशासन और आचरण में कमज़ोरी बड़ी मात्रा में पायी जाती है। योगाभ्यास को और गंभीरता से लेना होगा और योग-साधना का फल उत्पन्न करना भी होगा। तभी, मुझे लगता है, विश्व को दिशा दिखाने के बाद स्वयं भारत के लिए योग एक वरदान बनकर रहेगा। ‘विश्व योग दिवस 2022’ इस दिशा में ऐसा संकल्प दिवस साबित हो, यही लेखक की कामना है।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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