श्री नारायण गुरु सामाजिक बदलाव के जीवंत मूर्ति

 

श्री नारायण गुरु जयंती 2022 / 10 सितंबर / लेख

श्री नारायण गुरु सामाजिक बदलाव के जीवंत मूर्ति

डॉ. एम. डी. थॉमस

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10 सितंबर को ‘श्री नारायण गुरु जयंती’ मनायी जा रही है। आप की जयंती केरल के ‘मलयालम्’ पंचांग के अनुसार ‘चिंगम्’ माह के ‘चतयम्’ तारे के दिन मनायी जाती है। जयंती की तारीख हर साल बदलती ही नहीं, इस तारीख को लेकर अलग-अलग परंपराएँ भी हैं। खैर, आपकी जयंती सिर्फ केरल में ही नहीं, भारत के अन्य प्रांतों व अन्य देशों में भी मनायी जाती है, जहाँ केरल के लोग बसते हैं।

जयंती मनाने के तौर पर नारायण गुरु के नाम पर बने मंदिरों व मूर्तियों के साथ-साथ सड़कों पर सजावट, मंदिरों में फूलों की अर्चना, प्रार्थनाएँ, शिक्षा संस्थाओं में व्याख्यान व चर्चाएँ, सांप्रदायिक सद्भाव के लिए जुलूस, गरीबों को खाना खिलाना, सर्व धर्म प्रार्थना, आदि होते हैं।

एक परंपरा के अनुसार, नारायण गुरु का जन्म ईसवीं सन् 28 अगस्त 1856 को और समाधि 20 सितंबर 1928 को हुई थीं। आप केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम् के पास ‘चेंपष़ंती’ में पैदा हुए थे। आप ‘ईष़व’ समुदाय के सदस्य थे, जो कि निचली जाति का माना जाता था। खैर, श्री नारायण गुरु की शख्सियत दार्शनिक, कवि, लेखक, आध्यात्मिक नेता, समाज सुधारक, संत, आदि के रूप में उभरी थी। आप सामाजिक चेतना, ध्यान और आध्यात्मिक ऊँचाइयों के लिए जाने भी जाते थे।

नारायण गुरु ने मरुतुवामला पहाड़ के पिलातडम् गुहा में 8 साल ध्यान और योग किया और ज्ञानोदय हासिल किया। आप ने ‘मूत्ता पिल्लय’ और ‘रमण पिल्लय आशान’ से वेद, उपनिषद, साहित्य, तर्क, भाषण कला, आदि में शिक्षा ग्रहण की। चट्टंबी स्वामिकल् और अय्यवु स्वामिकल् धार्मिक व सामाजिक सुधारक के रूप में आपके समकालीन रहे। कुमारन आशान, मूलूर पद्मनाभ पनिकर और टी. के. माधवन आप के शिष्य थे।

नारायण गुरु के समय में केरल जात-पात व छुआ-छूत से बुरी तरह से ग्रस्त था। तथाकथित उच्च जाति के लोगों द्वारा भेद-भाव की हरकतें बहुत होती थीं। निचली जाति के लोगों को मंदिरों में प्रवेश निषेध था। विरोध के रूप में आपने निचली जाति के लोगों के लिए कुछ 40 मंदिरों को बनवाकर खुद प्राण-प्रतिष्ठा की। 1903 में आपने ‘श्री नारायण धर्म परिपालन योगम्’ की स्थापना की। वर्कला के पास शिवगिरि में निचली जाति के बच्चों की पढ़ाई के लिए विद्यालय भी शुरू किया।

शुरू से लेकर ब्राह्मण को ही मंदिर की प्राणा प्रतिष्ठा करने का अधिकार था। ऐसे में, आपने ‘अरुविपुरम् शिव मंदिर’ की प्राण प्रतिष्ठा की। आपके अधिकार पर सवाल किये जाने पर आपने बताया, ‘‘यह ब्राह्मण शिव नहीं है, बल्कि ईष़व शिव है’’। इसके अलावा, ‘वैकम् महादेव मंदिर’ में प्रवेश करने और उसके मार्ग पर चलने पर निषेध के खिलाफ आपने ‘वैकम् सत्याग्रह’ का आयोजन कर निषेध को हटवाया। साफ-सफाई, शिक्षा, भक्ति, खेती, हस्त-शिल्प, क्रय-विक्रय, आदि की वकालत करते हुए आपने ‘शिवगिरि तीर्थयात्रा’ भी शुरू की।

आपके बनवाये हुए मंदिर धर्म, जाति व लिंग को लेकर होनेवाले भेदभाव के खिलाफ आंदोलन की एक मुहिम थे। अरुविपुरम् का मंदिर शायद देश का पहला मंदिर है जहाँ कोई भी बगैर किसी भेदभाव के पूजा-पाठ कर सकता था।

आप मूर्ति-पूजा के भी खिलाफ थे। धीरे-धीरे आप ऐसे मंदिर्रों को बनवाना शुरू किया, जहाँ मूर्ति की जगह महज कोई ‘प्रतीक’ स्थापित है, जैसे ‘दीप’, ‘ग्रंथ’ और ‘आईना’। आगे चलकर आप सिर्फ ‘हॉल’ के हिमायती रहे, जो प्रार्थना, पढ़ाई, चर्चा, सेवा-कार्य, आदि तमाम कार्यों के लिए काम आ सकता है। 

मलयालम्, तमिल व संस्कृत में आपकी कुछ 40 किताबें प्रकाशित हैं। आपकी कृतियों में कविताएँ, स्तोत्र, अनुवाद, आदि शुमार हैं। आध्यात्मिक कविताओं का संग्रह ‘आत्मोपदेश शतकम्’ और प्रार्थनाओं का काव्य-संग्रह ‘दैव दशकम्’ आप की रचनाओं में खास हैं। आपने ईशावास्य उपनिषद, वल्लुवर का तिरुकुरल और कण्णुडैया का ओषि़विल ओडुकम् का अनुवाद भी किया है, जो कि खास उल्लेखनीय हैं।

1916 में तिरुवण्णामलै आश्रम में रमण महर्षि ने नारायण गुरु की मेज़बानी की थी। 1922 में रवीद्र नाथ टैगोर ने नारायण गुरु से मिलने आये और कहा, ‘‘हम ऐसा किसी से नहीं मिले हैं, जो आध्यात्मिक रूप से स्वामी नारायण गुरु से बढ़कर​ हैं या आध्यात्मिक साधना में उनके बराबर है।’’ 1925 में भारत की आज़ादी के पुरोधा महात्मा गाँधी ‘वैकम् सत्याग्रह’ में भाग लेने के लिए आये थे, तब नारायण गुरु से मिले और कहा, ‘‘श्री नारायण गुरु-जैसे संत के दर्शन करना मेरा सौभाग्य रहा’’।

नारायण गुरु आदि शंकरा के अद्वैत वाद से प्रभावित थे। सांप्रदायिक सद्भाव, सर्व धर्म समन्वय और सार्वजनिक भाईचारे के लिए आपका मंत्र था, ‘‘ओरु जाति, ओरु मतम्, ओरु दैवम् मनुष्यनॅ’’, याने ‘एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर, इन्सान के लिए’। आप समाज में इन्सानियत और बराबरी के सख्त हिमायती रहे। इस दिशा में आपका सूत्र वाक्य था, ‘‘धर्म हो कोई भी, इंसान का अच्छा होना काफी है’’।

इसके अलावा, केरल को जाति व्यवस्था से छुटकारा दिलाकर समाज-सुधार की आध्यात्मिक बुनियाद डालने में नारायण गुरु का अहम् हाथ रहा है। आपका आदर्श था, ‘‘जाति न पूछो, सोचो या कहो’’। यहाँ तक कहा जा सकता है वर्तमान केरल को बनाने में श्री नारायण गुरु का योगदान सबसे असरदार रहा है। पूरे भारत में भी जाति व्यवस्था के खिलाफ उठी सबसे पुरज़ोर और असरदार आवाज़ों में आपकी आवाज़ शुमार है।

श्री नारायण गुरु ने 1923 में केरल के आलुवा अद्वैत आश्रम में ‘सर्व धर्म सम्मेलन’ का आयोजन किया, जो कि भारतीय इतिहास में पहला है। आश्रम के सामने लिखा गया गुरु का आदर्श बहुत ध्यान देने लायक है, ‘‘आपस में बहस करके जीतने के लिए नहीं, वरन् जानने व जानने देने के लिए’’। तबसे लेकर यह सम्मेलन आश्रम में सालाना तौर पर आयोजित किया जाता है।

‘श्री नारायण गुरु जयंती 2022’ के पुनीत मौके पर श्री नारायण गुरु की आध्यात्मिक व सामाजिक चेतना से प्रेरणा  ली जाय और जाति, धर्म, लिंग, आदि को लेकर भेदभाव से अपने देश व समाज को निजात दिलाने की दिशा में प्रतिबद्धता भी बढ़े।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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