विश्वास किया नहीं जाता, हो जाता है: संत थॉमस

 

संत थॉमस दिवस 2022 / 03 जुलाई / लेख

विश्वास किया नहीं जाता, हो जाता है: संत थॉमस

 डॉ. एम. डी. थॉमस

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03 जुलाई को ‘संत थॉमस दिवस’ मनाया जाता है। थॉमस ईसवीं सन् 52 में भारत के पहले ईसाई के रूप में केरल के कोडुंगल्लूर में आये थे। कुछ बीस साल बाद वे ईसवीं सन् 72 में 03 जुलाई को तमिल नाडु के माइलापूर में किसी कट्टरवादी के वार से शहीद हुए थे। इस साल उनकी शहादत के 1950 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह साल भारतीय ईसाइयत के 1950वीं सालगिरह भी है। थॉमस को भारत के ‘संरक्षक संत’ मानने की रिवाज़ है। इन कारणों से 03 जुलाई को ‘भारतीय ईसाई दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है।

थॉमस ईसा मसीह के बारह शिष्यों में से एक थे। ‘थॉमस’ शब्द अरामी भाषा के ‘तोमा’, सिरियनी भाषा के ‘तवमा या तोमा’, इब्रानी भाषा के ‘तोम’ और यूनानी भाषा के ‘दिदीमोस’ से आता है, जिसका अर्थ है ‘ट्विन’ या जुड़वां’। बाइबिल के ‘नया विधान’ में तीन जगह थॉमस का खास उल्लेख मिलता है। यह उल्लेख साथी शिष्य योहन द्वारा ईसा की जीवनी और शिक्षा के विषय में लिखे गये ‘सुसमाचार’ में मिलता है। तीनों प्रसंगों से थॉमस की शख्सियत के ऐसे पहलू उभरकर आते हैं, जो कि बेमिसाल ही नहीं, सबके लिए प्रेरणादायक भी हैं।

थॉमस की शख्सियत सादगी और सीधापन से भरी-पूरी थी। अपने गुरु ईसा के प्रति उनके रिश्ते में नज़दीकी और आज़ादी का गुण था। गुरु के प्रति वे इतने समर्पित रहे कि उनके लिए मरने के लिए भी तैयार थे। अपने गुरुवर ईसा के विशिष्ट दर्शन उनकी पूँजी थी। तब जाकर, थॉमस भारत-जैसा सुदूर देश तक पहुँच पाये। संत थॉमस का प्रभाव केरल पर खास तौर पर रहा तो है ही, दक्षिण भारत और पूरे भारत में भी रहा, ऐसा कहना समीचीन लगता है।  

थॉमस के बारे में परंपरा है कि उन्होंने साढ़े सात गिर्जाघर बनवाये थे। थॉमस के नाम पर चली आ रही सिरियनी ईसाई परंपरा में कतिपय सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक खूबियाँ हैं। इसलिए यह दुनिया की विशिष्ट ईसाई परंपराओं में शुमार है। इब्राहीम मल्पान, पारेमाकल तोमा कत्तनार, युफ्रासिया इलवुतिंकल और विल्लारवट्टम के तोमा, आदि संत थॉमस परंपरा के कुछ खास नाम हैं। मार्गम कलि, परिचामुट्टु कलि, आदि इस परंपरा की कुछ सांस्कृतिक खूबियाँ भी हैं।  

थॉमस के बारे में एक किस्सा मशहूर है। थॉमस पेशे से बढ़ई थे। केरल के तत्कालीन राजा ने उन्हें एक राजमहल बनाने के लिए पैसे दिये। लेकिन, थॉमस ने उस धन को गरीबों में बाँटा। यह सुनकर राजा ने थॉमस को बुलाकर महल के बारे में पूछा। तब थॉमस का जवाब था कि उन्होंने राजा के लिए महल स्वर्ग में बनाया। थॉमस की दिव्य भावना से प्रभावित होकर राजा और उनका पूरा कुनबा ईसाई बन गये। कई राजा और उनके साथ भारी तादाद में प्रजा भी थॉमस के साथ हो लिए, यही इतिहास की परंपरा है।   

ईसाई समुदाय में अपनी ज़िंदगी को ईश्वर का बुलावा मानकर समाज-सेवा के लिए न्यौछावर करने की एक बेमिसाल परंपरा मौज़ूद है। देश व समाज के विकास और प्रगति में इन समाज सेवकों का योगदान बेहिसाब और अमूल्य रहा है। संत थॉमस परंपरा से बड़ी तादाद में लोग भारत के विविध शहरों, नगरों व गाँवों में तथा दुनिया के करीब-करीब सभी देशों में समाज सेवा करते आ रहे हैं, यह बाकायदा गौरव की बात है। इस मामले में संत थॉमस समुदाय सही मायने में काबिल-ए-तारीफ है।

बाइबिल के हवाले से ईसाई परंपरा में माना जाता है कि जी उठने के बाद ईसा ने एकाएक अपने शिष्यों को दर्शन दिये थे। लेकिन, उस समय थॉमस अपने साथियों के साथ नहीं थे। साथियों ने थॉमस से कहा कि उन्होंने प्रभु ईसा को देखा है। लेकिन, थॉमस ने पुनर्जीवित ईसा को खुद देखने की ठान ली और कहा ‘‘मैं देखने के बाद ही विश्वास करूँगा’’। कुछ आठ दिन बाद ईसा ने थॉमस को विशेष दर्शन दिये। थॉमस खुशी से फूला नहीं समा पाये। जवाब में बड़े सहज भाव से और खुले दिल से वे बोल उठे, ‘‘मेरे प्रभु, मेरे गुरु और मेरे ईश्वर’’। ‘मेरे’ शब्द की निजता, गहराई और गुणवत्ता के साथ थॉमस की विश्वास-घोषणा पूरी बाइबिलीय परंपरा में बेनज़ीर है।

इस किस्से को लेकर कुछ लोग थॉमस को ‘संदेह करनेवाले’ मानते हैं, जिसका हकीकत में कोई तुक नहीं लगता। बात यह है कि ईसा के पहले ‘जी उठने’ की बात किसी ने सुनी तक नहीं थी। इसलिए बगैर देखे या बिना सबूत के विश्वास करना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं था। ईसा ने अपने शिष्यों को दर्शन दिये। सभी शिष्यों ने देखने के बाद ही विश्वास किया, थॉमस ने भी। इसलिए संदेह का कोई सवाल ही नहीं उठता। उल्टे, हकीकत यह है कि थॉमस को मिले अहम् दर्शन से कुछ खास खूबियाँ उभर कर आयीं, जो कि थॉमस को आम से खास बनाती हैं।  

थॉमस ने अपने गुरुवर ईसा को बड़ी दिलचस्पी से, आँखें फाड़कर और जीभर देखा। वे ईसा को ऊपर से नीचे तक टकटकी लगाकर देखते रहे। क्या यह वही ईसा है, जो मेरे गुरु रहे? क्या यह वही ईसा है, जिसके हाथों और पैरों पर कील ठोके गये थे? क्या यह वही ईसा है जिसकी छाती छेदी गयी थी? क्या यह वही ईसा है जिसने अपनी जान को पिता ईश्वर के हाथों सौंपकर सलीब पर खुद को न्योछावर किया था? खैर, ईसा को देखते-देखते थॉमस का मुँह खुशी के मुस्कान के साथ कुछ खुले ही रह गये। उनके दिल, दिमाग व आत्मा लबालब भर गये। सहज ही, थॉमस को एहसास और यकीन हुआ कि ‘ईसा जी उठे हैं’ और ‘जी उठना’ एक अलौकिक हकीकत है, जो कि सबकी ज़िंदगी की मंजिल है।

थॉमस के ऐसे दिव्य एहसास से विश्वास की एक ज़बर्दस्त परिभाषा उभर कर आती है, जो कि धर्मनिरपेक्ष तौर पर सबके लिए फायदेमंद है। किसी के कहने को आँख मूँदकर मानना विश्वास नहीं, बल्कि बेवकूफी है, अंधविश्वास भी। अपनी आँखों से देखने, अपने दिमाग से समझने, अपने दिल से महसूस करने और अपनी आत्मा से साधने के बाद जो यों उभरता है, असल में वही विश्वास है। हिंदी फिल्म ‘प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है’ सार्थक है। ठीक उसी प्रकार, विश्वास भी किया नहीं जाता, बल्कि हो जाता है, अपने आप घटित हो जाता है। ज़ाहिर है, थॉमस के विश्वास में वैज्ञानिक चेतना ही नहीं, आध्यात्मिक चेतना भी भरपूर झलकती है।

‘संत थॉमस दिवस और भारतीय ईसाई दिवस 2022’ के पुनीत मौके पर यह संकल्प किया जाय कि अपना-अपना विश्वास कर्मकाण्ड से ऊपर उठकर ऐसा हो जो यों घटित होता जाय। साथ ही, अपने निजी एहसास को बुनियाद मानते हुए विश्वास को वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और जीवंत बनाने में संत थॉमस से प्रेरणा ली जानी भी चाहिए। संत थामस की जय हो, भारतीय ईसाई दिवस मंगलमय भी।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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संदेश (मासिक), पटना, वर्ष 72, अंक7-8, पृ. सं. 18-19 -- जुलाई-अगस्त 2022 में प्रकाशित 

  

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