रक्षा के पवित्र बंधन से बहनें सदैव महफूज रहें!
रक्षा बंधन 2022 / 11 अगस्त / लेख
रक्षा के पवित्र
बंधन से बहनें सदैव महफूज रहें!
डॉ. एम. डी. थॉमस
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11 अगस्त को ‘रक्षा बंधन’ का पर्व मनाया जा रहा है। आम भाषा में इस पर्व को ‘राखी’ कही जाती है। राखी खास तौर पर उत्तर भारत का पर्व है। लेकिन, आजकल यह पर्व दक्षिण भारत में ही नहीं, दक्षिण एशिया के कई इलाकों में भी कुछ हलके-फुलके ढंग से मनायी जाती है।
रक्षा बंधन या राखी आम तौर पर हिंदू परंपरा के लोग मनाते हैं। हिंदू परंपरा के प्रभाव में आकर कहीं-कहीं यह पर्व कुछ अन्य समुदाय के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है। आजकल रक्षाबंधन की लोकप्रियता बढ़ी है। इसमें हिंदी फिल्मों का अहम् हाथ है, यह कहना जायज लगता है।
रक्षा बंधन चाँद को आधार मानकर चलनेवाले हिंदू पंचांग के सावन माह की आखिरी तारीख को आता है। दूसरे शब्दों में, राखी का लोकप्रिय पर्व सावन महीने के पूर्ण चंद्र या पूर्णिमा के दिन आता है। राखी को ‘बहनों का दिन’ या ‘बहनों का पर्व’ भी माना जाता है। राखी बाँधने के लिए बहन भाई के घर जाती है, ऐसी रिवाज़ है।
रक्षा सूत्र अक्सर भाई की कलई पर बहन द्वारा बाँधा जाता है। लेकिन, राजा-प्रजा, बेटा-माँ और पति-पत्नी के बीच भी रक्षा की ज़िम्मेदारी का यह रस्म अदा किया जा सकता है। रक्षा सूत्र इस बात का प्रतीक है कि जिसकी कलई पर राखी बाँधी जाती है, वह रक्षा की जवाबदारी के प्रतीक के रूप में कुछ आर्थिक इनाम देता है।
राखी के पर्व के आते-आते बाज़ारों में रंग-बिरंगी और अलग-अलग किस्म की राखियों का भरमार होता है। खास तौर पर लड़कियों व महिलाओं द्वारा राखियों की खूब खरीददारी होती है। राखी बांधने के लिए लड़कियाँ और महिलाएँ भाइयों के या होने वाले भाई के घर जाती हैं। दूर या विलायत में रहनेवालों के लिए राखी डाक से भी भेजी जाती है।
रक्षा बंधन या राखी
की मुख्य रूप से दो परंपराएँ होती हैं, एक रक्षाबंधन की ब्राह्मणीय परंपरा और दूसरी
राखी की लोक परंपरा। पहली परंपरा के अनुसार, ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान, संरक्षक
या राजा की कलई पर ‘रक्षिका’ का सूत्र बाँधता है। इस परंपरा के अनुसार, तथाकथित नीची
जाति के लोगों द्वारा उच्च जाति के लोगों की कलई पर भी राखी बाँधी जाती है। आर्थिक
इनाम इस रस्म की वापसी कड़ी है।
दूसरी परंपरा के मुताबिक, पुराने समय में राखी वह सालाना मौका था जब शादीशुदा महिलाएँ अपनी मायका जाती थीं। रस्म अदायगी के तौर पर, बहन भाई के कान के पीछे या सिर पर बारली आदि के ठंडल को रखती है, जिसे ‘सलूनो’ या ‘रख्रि’ कहते हैं और बदले में आर्थिक इनाम भी पाती हैं। खैर, आज रक्षा बंधन या राखी कई परंपराओं का मिला-जुला और कुछ विकसित रूप है, यह कहना ठीक लगता है।
रक्षा बंधन या राखी में ‘भाई या किसी बड़े को गोद लिया जाता है’। राखी में भाई-बहन-सा रिश्ता ही सबसे खास है। बहनें सजी हुई थाली में राखी लिए भाई के पास बड़े प्यार और अदब के साथ चलती है। वे भाई की दाहिने कलई पर राखी बाँधने के साथ-साथ माथे पर तिलक भी अक्सर लगाती हैं। कहीं-कहीं कुछ मीठा खिलाने की रिवाज़ भी है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि नये-ताज़े कपड़े पहनना और बढिय़ा खाना खाना और खिलाना पर्व राखी का अंग है।
रक्षा सूत्र या राखी बाँधने के कुछ खास मकसद हैं, अशुभ और अनहोनी के खिलाफ खुद की परिरक्षा करना, दूसरे के प्रति प्यार व सम्मान या दूसरे पर भरोसा ज़ाहिर करना और आपस में निर्भर होना। भाई या बड़े की लंबी उम्र की कामना भी राखी के रस्म में निहित है। खास तौर पर, रक्षाबंधन या राखी भाई-बहन-सा प्यार और रिश्ते की गहराई और उसकी गुणवत्ता का जीता-जागता प्रतीक है।
आजकल के माहौल में, जब नारी वर्ग, पहले से कहीं बहुत ज्यादा, जुर्म का शिकार हो जाता है, रक्षा बंधन का पर्व बड़े महत्व का है। राखी बहन से गोद लिए गए भाई को निजी भाई-जैसा पवित्र रिश्ता कायम रखना चाहिए। पुरुषों द्वारा बालिकाओं व महिलाओं को कमज़ोर समझकर उन पर जुर्म करना तथा उनसे नाजायज़ फायदा उठाना बंद हो, यह ज़रूरी है। समूचे नारी वर्ग को सुरक्षा मुहैया हो, तभी रक्षा बंधन का पर्व असल में सार्थक होता है।
ठीक वैसे ही, जहाँ तथाकथित निचले समुदाय के लोगों द्वारा उच्च जाति के या आर्थिक रूप से संपन्न लोगों की कलई पर राखी बाँधी जाती है, वहाँ सद्भाव, उदारता और स्थायी रिश्ते का होना दरकार है। ऊँच-नीच का भाव खतम हो, अमीर-गरीब का आपसी फासला कम हो, ऐसे माहौल में ही रक्षा बंधन का सही मतलब उभरकर आता है।
साफ है, रक्षा बंधन या राखी का पर्व प्यार, सद्भाव, मदद और आपसी रिश्ते की रूहानी तहज़ीब की निशानी है। धर्म का बस यही मकसद है कि वह नर-नारी में ही नहीं, इन्सान-इन्सान, समुदाय-समुदाय व देश-देश के आपस में प्यार और भाईचारे के अध्यात्म को सामाजिक जीवन में मज़बूत करता जाये। रक्षा बंधन या राखी का धार्मिक पर्व भारत के और दुनिया के उलझी हुई धार्मिक व सांस्कृतिक माहौल को सुलझाने में काम आये, यही कायदा है।
‘रक्षा बंधन या राखी
2022’ के पुनीत मौके पर यह उम्मीद और कोशिश की जाय कि रक्षा बंधन या राखी का पर्व मनाने
से हमारा देश व समाज महिलाओं के लिए ही नहीं, कमतरों के लिए भी खास तौर पर महफूज बने।
प्यार के पवित्र भाव से भाई-बहन-सा रिश्ता बढ़ता जाये और इसे देखकर खुदा बाप अपनी औलाद
पर नाज़ कर सके, ऐसी बने इन्सानी तहज़ीब। रक्षा बंधन या राखी मनाने वाले सभी बहनों
व भाइयों को और देश व विदेश के समस्त दोस्तों को मंगल कामनाएँ भी।
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
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