करम पूजा से प्रेरणा लेकर प्रकृति से जुड़े रहें

 

करम पूजा 2022 / 17 सितंबर / लेख 

करम पूजा से प्रेरणा लेकर प्रकृति से जुड़े रहें

डॉ. एम. डी. थॉमस 

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17 सितंबर को ‘करम पूजा’ का पर्व मनाया जा रहा है। कहीं-कहीं यह पर्व 16 सितंबर को भी मनाया जाता हैं। ज़ाहिर है, यह पर्व जनजातियों में, वह भी आदिवासियों में, मनाया जाता है। इस पर्व से आदिवासी संस्कृति की पहचान और गरिमा उभरकर आती हैं। 

झारखण्ड पर्वों के लिए मशहूर है। जनजातियों के कई पर्व होते हैं। करम पूजा उनमें सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण है। करम पर्व झारखण्ड और बंगाल के झारग्राम में बहुत ही खास है। इसके अलावा, यह पर्व बिहार, असम, मध्य प्रदेश, बंगाल, छत्तीसगढ़, आदि सूबों में मनाया जाता है। झारखण्ड में यह दिन सार्वजनिक छुट्टी भी है।

करम पर्व हिंदू महीना भाद्रप्रद या भादो में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। आदिवासियों के अनेक समुदायों में इस पर्व का महत्व ज्यादा है, जैसे मुंडा, हो, खोरथा, कोरबा, उराँव, मुंडाद्री, संथाली, नागपुरी, बिझवाड़ी, बैग और मझवार। पर्व का नाम ‘करम’ नामक पेड़ से आया है। पेड़ कर्म देवता का प्रतीक है। जनजातियों के अनुष्ठान और परंपराएँ बहुत कुछ करम पेड़ के इर्द-गिर्द होती हैं।

इस दिन लोग करम देवता या करम रानी से प्रार्थना करते हैं। करम देवता प्रकृति का प्रतीक है। ज़ाहिर-सी बात है कि आदिवासी समुदाय अपनी आजीविका के लिए प्रकृति पर बहुत निर्भर है। यह दिन भाई-बहनों के लिए भी महत्व का है, इसलिए कि इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए प्रार्थना करती हैं। इस दिन मियाँ-बीबी भी अपनी वैवाहिक जीवन की कामयाबी के लिए प्रार्थना करते हैं। करम पर्व आदिवासियों व जनजातियों के लिए अहम् है।

करम पर्व मनाने के तौर-तरीके इस प्रकार हैं। करम पूजा पेड़ के प्रति सम्मान के रूप में मनायी जाती है। यह फसल की कटाई से भी रिश्ता रखता है। पेड़ उपजाऊपन, समृद्धि और शुभ का प्रतीक है। पर्व के तौर पर लोग पेड़ की शाखा को लेकर गाते-नाचते हुए पेड़ की परिक्रमा करते हैं। दूध और हांडिया या चावल से बनाये हुए बीयर में डुबोकर लोग पेड़ की टहनी को उठाकर नाचते हैं। पर्व का यह नज़ारा बहुत ही दिलचस्प और खूबसूरत है।       

पर्व की तैयारी कुछ 10-12 दिन पहले शुरू होती है। युवा लोग, खास रूप से लड़कियाँ, जंगल से करम पेड़ की लकड़ी, फल-फूलादि के साथ, ले आते हैं। पर्व के दिन महिलाएँ चावल को ढेकी में पाउण्ड करते हुए पर्व की शुरूआत करती हैं। उस चावल के आटे से मिठाई और नमकीन पकवान बनाये जाते और पड़ोसियों में बाँटे भी जाते हैं।

पीले रंग के फूल को कान के पीछे रखते हुए पारंपरिक नाच होती है। नाच-गान के साथ करम पेड़ की टहनियों को एक-दूसरे की ओर दिया जाता है। करम पेड़ की टहनियों को बीच में रखकर ईश्वर या प्रकृति के रूप में पूजा जाता है। टहनियों का माल्यार्पण कर फूल, दाने, दही और चावल चढ़ाया जाता है। इस प्रकार लोग करम देवता को खुश कर उसके आशिष की कामना करते हैं, जिससे किस्मत हर प्रकार से अच्छी होती है।

करम नाच के कई प्रकार होते हैं, जैसे झुमार, एकतारिया, लहकी, सिरकी, आदि। लेकिन सभी प्रकारों में केंद्र पेड़ ही है। महिलाएँ व पुरुष दोनो नाचते समय जनजातीय पोशाक और गहने पहने रहते हैं। वे थुमकी, छल्ला, परवी, झुमकी, आदि साजों से बनी धुनों के अनुसार नाचते हैं। साजों में थुमकी खास है, जो कि बीच में रखी जाती है।

साथ ही, नाचने वाले स्वर, ताल व लय के मुताबिक नाचते हैं। पुरुष आगे की ओर कूद-कूद कर नाचते हैं, जब कि महिलाएँ झुक-झुक कर। महिलाएँ गोलाकार में खड़ी होकर और अपने हाथों को साथ नाचने वाली के कमर पर हाथ पकड़ती हुई नाचती हैं। नाचने वालों के साथ-साथ देखने-सुनने वालों को भी इस नज़ारे से बेहद मज़ा आता है। 

आदिवासी समुदायों में सामुदायिकता की भावना बहुत है। नाच-गाने का महत्व भी बहुत है। नाच-गाने करीब-करीब पूरी तरह से सामूहिक भी है। नर-नारी में बराबरी की भावना बेहद सराहनीय है। किसी-किसी सामुदाय में महिलाएँ पुरुषों से भी अधिक सामाजिक और प्रगतिशील होती हैं। समाज में महिलाएँ सभी लोगों से घुल-मिल कर चलती भी हैं।  

प्रकृति को, वह भी पेड़ को, देवता का प्रतीक मानना एक गज़ब की सोच है। आखिर, इन्सान को और सभी जीवों को प्रकृति की गोद में जीना होता है। प्रकृति व पेड़-पौधे में खुदा को देखना और उन्हें खुदा के लायक इज़्ज़त देना हकीकत में एक ज़बर्दस्त परंपरा है। आदिवासियों व जनजातियों की यह करम पूजा सभी समुदायों के लिए प्रेरणादायक है, इसमें कोई शक नहीं है।

‘करम पूजा 2022’ के पुनीत मौके पर यह संकल्प हो कि करम पूजा से प्रेरणा लेकर प्रकृति से बराबर जुड़े रहें। पेड़-पौधे व प्रकृति में मौज़ूद ईश्वर-चेतना को भावना में तब्दील कर धरती को ही स्वर्ग बनाने की दिशा में चलते जायें।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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