विश्व सामाजिक मंच के कुछ सपने
विश्व सामाजिक
मंच के कुछ सपने
डॉ. एम. डी. थॉमस
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विश्व सामाजिक मंच-2004 का मेजबान बनने की खुशकिस्मती भारत में पहली बार मुम्बई को मिली। उद्घाटन सत्र से लेकर समापन सत्र तक वह एक अनेखा समारोह ही रहा। करीब 130 देशों के लाखों लोगों का यह रंगारंग समागम अपने आप में एक ऐसी घटना थी, जिसे कतई भुलाया नहीं जा सकता। करीब-करीब पूरी दुनिया की एक झ्लक देने के साथ-साथ समूची इन्सानी सँस्कृति की एक सुखद एहसास भी कराने वाले इस मंच के आयोजकों को जितना सराहा जाय कम है। विभिन्न देशों से आये हुए सैकड़ों संगठनों का यह सँयुक्त संकल्प एक भारी-भरकम सपने का साकार रूप लिया, यह वाकई काययाबी की निशानी रही। इस विश्व मंच में मानवता की गरिमा को बनाये रखने के लिए जी-तोड़ संघर्ष करने के कारण पुरस्कारों से नवाज़े गये कतिपय श्रेष्ठ इन्सानों-जैसे अरुंधती राय, मेधा पाटकर, शिरिन एबादी, जोसफ स्टिग्लिटस, अरुणा राय, आदि का विद्यमान होना एक बड़ी उपलब्धि ही थी। लाखों लोगों की यह जमात एक महापर्व से कम नहीं थी, जिसे देखते ही बनता है। विविधता में एकता तथा विश्व बन्धुत्व के आदर्श ने इससे अच्छा सार्थक रूप सारी दुनिया में शायद ही कहीं लिया है।
इस विश्व सामाजिक मंच में भिन्न-भिन्न संगठनों ने नाचते-गाते-बजाते हुए विश्व मानव समुदाय के लिए अपना-अपना सन्देश पेश किया। सम्मेलन-कक्षों में सैकड़ों विषयों पर गंभीरता से विचार-विमर्श भी हुआ। मुद्रित सामग्री के विक्षेपण से दुनिया भर के मुद्दों को उजागर किया गया। विभिन्न देशों के वेशभूषाओं को एक निगाह में देखना तथा देश-विदेश के भोज्य-पदार्थों को चखना भी एक विशेष आनन्द से कम नहीं था। जनवरी के 16 से 21 तक मुम्बई में चला विश्व समुदाय का यह बहु-आयामी मिलन-समारोह कतिपय नये तथा गंभीर विचारों का संगम-स्थल ही था।
विश्व सामाजिक मंच
सोचने का एक नया अंदाज था। अतीत की बनायी हुई पिटी-पिटायी राहों से चलने से असहमति
इस मंच की भीतरी पहचान थी। पुरानी मान्यताओं की अप्रासंगिकता को पुकार-पुकार कर बताना
उसका ध्येय था। खोखली और खुदगर्जी से भरी-पूरी परम्परावाद से निजात पाकर एक नये आर्थिक
और सामाजिक आदर्श को संस्थापित करना इस विश्व मंच का मकसद था। तथाकयित समृद्ध और ताकत
वाले देशों द्वारा बनायी गयी दुनिया की परिभाषा को धिक्कारना भी इस मंच का लक्ष्य था।
वर्तमान दुनिया की प्रवृत्तियों के दुष्परिणाम को नकारने का मकसद इस सामाजिक मंच का
विश्व-संकल्प था। विभिन्न देशों के शासक-प्रशासक और धर्म-नेताओं के स्वार्थ-भरे तथा
सामन्तवादी रवैये के खिलाफ एक चुनौतीपूर्ण आवाज़ भी इस विश्व मंच में मौजूद थी। नेतृत्व
के गुणें से वंचित नेतों के नेतृत्व पर उम्मीद नहीं रखते हुए अपने ही बलबूते उठकर अपने
पैरों पर खड़े होकर अपनी दिशा खुद टटोलने की कोशिश करने वाली आम जनता की एक नयी चेतना
विश्व सामाजिक मंच की चरम उपलब्धि थी।
वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण, आदि नीतियाँ उच्च वर्ग के कुछ लोगों को ही सुरक्षा प्रदान करती हैं। आम लोगों की जरूरतों को नजऱअन्दाज़ करने की तथा उनके अस्तित्व की अवज्ञा करने की एक हद होती है। दलित, जनजाति, गरीब और नीची जाति के लोग कब तक हाशिये पर सरकाये हुए रहेंगे? बच्चे कब तक प्राथामिक शिक्षा से वंचित तथा अकाल मौत के शिकार रहेंगे? महिला और मज़दूर कब तक दूसरी श्रेणी के नागरिक माने जाते रहेंगे? हर इन्सान के लिए न्याय के मुताबिक अपने-अपने हिस्से को सुरक्षित करने के संकल्प पर दुनिया के तथाकथित बड़े पढ़े-लिखे और शासक वर्ग कब तक ईमानदारी से अमल करने लगेंगे? ये हैं कुछ सवालात जो विश्व सामाजिक मंच दुनिया के सामने पेश करते हैं।
विश्व सामाजिक मंच मान-सम्मान की लड़ाई थी। वह बुनियादी मानवाधिकार की बुलन्द मांग थी। यह पश्चिमी देशों की या तथाकथित उन्नत देशों द्वारा प्रस्तुत इन्सानी विकास, सुख-समृद्धि, शांति आदि की नज़रिये के साथ-साथ उनकी शाहंशाही की पराजय की तस्वीर थी। यह विश्व समाजिक मंच समूची मानव समाज में एक नये आपसी समीकरण और सरोकार की ख्वाहिश थी। यह जाति, रंग, नस्ल, लिंग, भाषा, सम्प्रदाय, आदि के आधार पर किसी भी भेदभाव के बगैर एक बहुआयामी इन्सानी सँस्कृति की ओर मानव समुदाय की आम जनता द्वारा उठाया गया एक ठोस कदम था। यह मंच नेतागिरी, दादागरी, युद्ध, लालच, अतिक्रमण, शोषण, मनमुटाव आदि नकारात्मक प्रवृतियों से ऊपर उठकर इन्सानी समाज के एक बेहतर भविष्य की ओर एक सोचा-समझ और प्रतिबद्ध सफर की शुरुआत थी। यह विश्व समाजिक मंच मानव समाज के लिए एक नये भविष्य के निर्माण के लिए ऐसे कुछ सपनों का सजीव नक्शा था।
हाँ, एक दूसरा विश्व मुमकिन है। बस इतना ही, निहित स्वार्थ दूर रहे, खुला सोच चलता रहे। इस दिशा में संकल्पित, इन्सान और संगठन बढ़ते रहें। ये सभी उदात्त सपने साकार रूप लें और कामयाबी की ऊँचाइयाँ छू लें। विश्व मानव समुदाय का ऐसा संघर्ष जारी रहे, यही मंगलकामना है।
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
निम्नलिखित माध्यमों
के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p),
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माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’
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संदेश (मासिक), पटना, अंक 03, पृष्ठ 24-25 में -- मार्च 2004 को प्रकाशित
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