धर्म और नैतिकता
धर्म और नैतिकता
डॉ. एम. डी. थॉमस
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धर्म और नैतिकता के विषय पर अपने मनोविचारों को व्यक्त करते हुए डॉ. एम. डी. थॉमस बोले: ‘हमारे मानव समाज में धर्म की कमी नहीं है, धार्मिक परंपराओं की कमी नहीं है, विश्वासों की कमी नहीं है, अनुष्ठानों की कमी नहीं है, सिद्धांतों की कमी नहीं है, यह सब बढ़ता जा रहा है। यह सब होते हुए भी आतंकवाद, भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है।
देव और दानव का मिश्रण है इंसान, हर इंसान में सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा है।
धार्मिकता, अनुष्ठान, सिद्धांत चाहिए लेकिन महत्व उस बात का है, जो फल निकलता है - प्रीति का जो भाव परमात्मा के प्रति और एक-दूसरे के प्रति होना चाहिए, वह कमजोर है।
नैतिकता को धर्म की चेतना कहते हुए उन्होंने कहा कि जब धर्मिक विश्वासों के फलस्वरूप, सिद्धांतों के फलस्वरूप मूल चेतना जागृत हो जाती है तब ही वह धर्म सार्थक है।’
परिवर्तन और आध्यात्मिक जागृति
परिवर्तन को जीवन का बुनियादी पहलू बताते हुए डॉ. एम. डी. थॉमस ने कहा कि परिवर्तन के बिना जीव रह नहीं सकता। आत्मा परिवर्तनशील है, स्वतंत्र है, गतिशील है। उनका मानना था कि हम केवल शारीरिक स्तर पर ना रहें बल्कि आत्मा के स्तर तक पहुँचें क्योंकि परिवर्तन आत्मा से जुड़ी हुई बात है। व्यक्तिगत परिवर्तन के द्वारा अपने भीतर आध्यात्मिक चेतना को जागृत करना ही आध्यात्मिक परिवर्तन है। यह आध्यात्मिक परिवर्तन के निमित्त बन सकता है।
उन्होंने देखा कि धर्म के मुख्य दो पक्ष हैं - व्यक्तिगत औरा सामाजिक । व्यक्तिगत रूप से हर धर्म की अपनी-अपनी पहचान, अपने नियम तथा विश्वास हैं किंतु आध्यात्मिक जागृति की नींव धर्म के सामाजिक रूप में समाई है। जब हम दूसरों की परंपराओं को जानें, गुणों से सीखें तथा उनसे मिल-जूलकर चलें।
महामंत्र...
इंसानियत के धर्म की
स्थापना तथा मानव समाज को बेहतर बनाने के संकल्प को अमल में लाने के लिए डॉ. एम. डी.
थॉमस ने महामंत्र सुनाया... 1. सद्भाव 2. समभाव 3. संबंध 4. सहयोग 5. समन्वय
उनका मानना था कि तभी
हम ‘जीयो और जीने दो’ - इस सूत्र को अमल में ला सकेंगे। अंत में अपनी मंगल कामनाओं
को व्यक्त करते हुए उन्होंनें कहा: ‘इस सम्मेलन के बाहर जाते समय हम कंधा लगाकर, हाथ-में-हाथ
मिलाते हुए, एक-दूसरे की मद्द करते हुए, प्रेम और सेवा का रास्ता अपनाते हुए चलने में
सक्षम हों, इतनी हिम्मत और ताकत हमारी आत्मा में आ जायें इसके लिए परमेश्वर हम को आशीर्वाद
प्रदान करें।’
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
निम्नलिखित माध्यमों
के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p),
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माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’
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स्मारिका, आबू पर्वत, राजस्थान, पृष्ठ संख्या 52-53 में -- अप्रेल 2001 को प्रकाशित
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