वाह! श्री गुरु ग्रन्थ साहिब

 

वाह! श्री गुरु ग्रन्थ साहिब

डॉ. एम. डी. थॉमस

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वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह। इस वर्ष श्री गुरुग्रन्थ साहिब के पहले प्रकाश पर्व की 400वीं सालगिरह मनायी जा रही है। जब शताब्दि की यात्रा पूरी करने के इस पुनीत अवसर पर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की अहमियत के कुछ आयामों पर गंभीरता से विचार करना खास तौर पर आज के संदर्भ में मानव समाज के हित में है, इसमें कोई शक नहीं है।

विश्व के धर्मग्रन्थों के समवाय में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का एक अनोखा स्थान है। सिक्ख समुदाय अकेले एक धार्मिक परंपरा है। जिसमें धर्मग्रन्थ ही गुरु के रुप में प्रतिष्ठित है। गुरु ग्रन्थ हैं और ग्रन्थ ही गुरु। हर व्यक्ति में गुरु के बदलाव और लौकिक चंचलता की संभावना रहती है। और स्थायी-भाव रहता है। साथ ही, व्यक्ति को जितना सम्मवन मिलता है उसमें भी साधिक सम्मान गुरु ग्रन्थ साहिब को दिया जाता है। ग्रन्थ में स्थायी-भाव रहता है। भारतीय परम्परा में गुरु की विशेष प्रधानता रहती है। गुरु वह है जो बड़ा है। गुरु की और सहज दिव्य-भाव है। इसी दिव्य-भाव को आत्मसात करते हुए सिक्ख परम्परा खड़ी हुई है। दिव्य का पंजाबी रूप है सिक्ख। सिक्ख सीखने वाला है। सीखने का भाव सिक्ख परम्परा के केन्द्र में पाया जाता है। ‘गुरु-भाव’  सिवा जीवन दृष्टि कर सकते हैं। धार्मिक-अध्यात्मिक दृष्टि से इन्सान का इससें उदाम कोई भाव नहीं हो सकता है।

विश्व में कोई भी धर्म ग्रन्थ नहीं है जो पद्य में लिखा गया है। यदि लिखा गया हो तो भी वह शास्त्रीयता से लदा हुआ है। गुरु ग्रन्थ साहिब काव्यात्मक और संगीतात्मक है।

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पर विचार करना एक भारतीय प्र​यत्न है। यह महासागर के समान विशाल और गहन है। इसके शिसिजो को झुका नहीं सकता। इसकी गहराइयों को पार नहीं कर सकता। बस इतना ही, गुरु ग्रन्थ साहिब को समझने का एक प्रयास ही अपने आप में कल्याणकारी है।

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब ज्ञान का अपार स्रोत हैं। वैसे तो सभी धर्मग्रन्थ ज्ञान का भण्डार है। गुरु ग्रन्थ साहिब के ज्ञान की खास उसकी व्यावहारिकता है। सन्तों के अपने और दूसरों की ज़िन्दगी में बचे हुए ज्ञान को अपनी-अपनी वाणी में सम्बोधित किया है। उसका ज्ञान व्यवहार के धरातल पर लागू किया हुआ है। पंडित ज्ञान की बोझिल​ और नीरसता उसमें नहीं है। गुरु नानक और अन्य सन्तो से भी वाणियाँ सरीक है। और इन्सानी जि़न्दगी के विविध आयामों को अपने में समेटे हुए हैं। इसलिए गुरु ग्रन्थ साहिब में शब्द ज्ञान मानव समाज को दिशा देने में विशेष प्रयास है।

गुरु ग्रन्थ साहिब में अनेक सन्त कवियों की आध्यात्मिक कविताएँ संकलिप्त हुई है। काव्य मानव दिल की सहज भाषा है। दिल की अभिव्यक्तियाँ किसी अनुभुतियों से समृद्ध है। उनमें खास तौर पर आप लोगों की जि़न्दगी से जुड़ी हुई तमाम बातें कूट-कूट कर भरी हुई मिलती है। काव्यमयता के कारण स्रोता के दिल को सहज रूप से छूने में शरीक हो गया है। गुरुवाणी पूरी तरह से संगीत के सुर-लय-ताल में बन्धी हुई है। इसलिए गुरु ग्रन्थ साहिब पढ़ा नहीं जाता है, गाया जाता है। गुरुवाणी का भजन कीर्तन विशेष सुखदायक है।

मुझे पहली बार सन् 2000 में अमृतत्य को मन्दिर देखने का मौका मिला। भजन-कीर्तन चल रहा था। मैं गुरु ग्रन्थ साहिब का नमन करके मानी के भीतर जाकर बैठा। कीर्तन के आनन्द प्रेरित होकर मुझे आध्यत्मिक रस से सरोबार हुआ। मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं एक घण्टा पुरा बैठा रहा। गुरु ग्रन्थ साहिब की अनुभूतिपूरक बड़ा बेमिसाल है। यह आध्यात्मिक रस के निस्पादन के लिए बेहद फायदा है।

गुरु ग्रन्थ साहिब मानव सँस्कृति की एक अनोखी खासियत है। यह केवल समुदाय की पूँजी नहीं है। यह समूची इन्सानी समाज की जी है। इससे सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। इसका अध्ययन किया जाना चाहिए। 400वीं सालगिरह में इस पर गंभीर अध्ययन होना चाहिए। इसके गायन से अध्यात्म और आनन्द लिया जाना चाहिए।

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब मजहबी तालमेल की उत्तम मिसाल हैं। इनमें अपने सन्तों की वाणियाँ संकलित है। सिर्फ  गुरु नानक जी की वाणियाँ को खास कर सिर्फ सिखत्व परम्परा के गुरुओं की वाणियों को संकलित नहीं चाहिए, गुरु अर्जुन देव ने साम्प्रदायिक खुलेपन का परिचय दिया है। अन्य अनेक सन्तों की वाणियों को शामिल किये जाने से गुरु ग्रन्थ साहिब आज सिक्ख परम्परा से अधर्म सम्बन्ध हुई है, साथ ही जाति वर्ग आदि के अध्ययन पर सन्त कवियों का वैभीकरण नहीं करते है, आध्यात्मिक परम्परा का एक बहुत ही व्यापक धर्म निर्मल हुआ है।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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सन्देश (मासिक), पटना, अंक 07, पृष्ठ संख्या 10 में -- अक्तूबर 2004 को प्रकाशित 

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