मौत से नये जीवन की ओर

 

ईसा मसीह की पुण्यतिथि पर विशेष

मौत से नये जीवन की ओर

         डॉ. एम. डी. थॉमस

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गुड फ्राइडे, यानी पवित्र शुक्रवार, हजऱत ईसा मसीह की पुण्य तिथि है। यह दिन दुनिया के सबसे बड़े धर्म-समुदाय की आस्था की बुनियाद  की याद दिलाता है। इन दिनों करीबन एक तिहाई इन्सानी समाज में शामिल ईसाई लोग अपने ईसाई अस्तित्व की सार्थकता की आजमाइश करते हैं। वे अपनी-अपनी ज़िन्दगी को गुरुवर ईसा की इनायत से एक बार फिर ताजग़ी से भर लेते हैं और आपसी प्रेम और सेवा-भाव से अपना जीवन जीने का संकल्प करते हैं। ईसा की शख्सियत की आध्यात्मिक और सामाजिक महत्ता और ईसाई समुदाय द्वारा बीस सदियों के अरसे से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में मानव-समाज को दिये जा रहे  योगदान के मद्देनज़र​ यह बेशक यह कहा जा सकता है कि ईसा की यह पुण्य तिथि समूची मानव जाति के लिए किसी-न-किसी प्रकार से मतलब रखती है।

‘मौत से नये जीवन की ओर’ यह सूत्र ईसा मसीह की पुण्य तिथि का निचौड़ पेश करती है। ईसा की पुण्य तिथि ईसा के जीवन की आखिरी घटनाओं की कहानी है। इसके दो पहलू हैं, एक रस्सी के दो सिरे-जैसे - पहला, ईसा की मृत्यु और दूसरा, ईसा का पुनरुत्थान, यानी जी उठना। इतिहास गवाह है कि ईसा की मौत हुई थी। लेकिन उनके जी उठने का एतिहासिक सबूत नहीं मिलता है। इसके लिए ‘आध्यात्मिक दर्शन’ का वरदान निहायत ज़रूरी है। ईसा के चेले इसी दर्शन के बलबूते ही अपनी हताशा से उबर पाये और नई जोश से युक्त हुए। मृतकों में से जी उठने से ही ईसा की मृत्यु को अवतारी अर्थ मिला। समूची इसाई परम्परा इसी विश्वास पर टिकी हुई है ।

ईसा परमात्मा के साथ बेटे के समान ताल्लुक रखते थे। उन्हें बेहद मात्रा में खुदाई शक्तियाँ हासिल थीं। उनका जीवन-नज़रिया कुछ लीक से हटकर था। वे अधिकार के साथ बोलते और व्यवहार करते थे। उन्होंने यहूदी समाज के धार्मिक पाखण्ड और सामाजिक भ्रष्टाचार को चुनौती दी और सच्चाई के लिए डटकर खड़े रहे। स्वार्थ और रूढ़िवाद के सहारे पल रहे मज़हबी और राजनैतिक नेताओं ने उनके रूख को बगावत का करार दिया। नतीजा यह हुआ, ईसा को कई प्रकार के दुख-दर्द और सलीबी प्राण-दण्ड की सजा मिली। सलीब पर उन्होंने अपने गुनाहकारों के लिए पिता ईश्वर से गुज़ारिश की - ‘पिता! उन्हें माफ़ कर, ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।’ इसके बाद, उन्होंने अपनी मौत को इन शब्दों से कबूल किया,  ‘पिता!  मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों  सौंपता हूँ।’ वे अपनी भविष्यवाणी के मुताबिक जी उठे और उन्होंने अपनी अवतारी मौत के आध्यात्मिक आशय को उज़ागर किया।

ईसा की तालीम उनकी अपनी ज़िन्दगी की घटनाओं पर रोशनी फेरती है। उन्होंने कहा था - ‘इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दें’। उन्होंने सलीब पर पूरी मानव जाति के लिए अपने को न्यौछावर कर उसूल और हरकत के बीच ताल-मेल बिठाया। उन्होंने यह भी कहा था - ‘जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा; जो मेरे कारण अपने जीवन को खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा’। बेहतर कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, यह जीवन का नियम है। इसलिए कबीर कहते हैं - ‘आप मेट्या हरि मिलै’। खोना ज़िन्दगी में उतरने का नाम है और पाना, चढ़ने का । अवरोहण से आरोहण की ओर चलना ज़िन्दगी की कामयाबी का रहस्य है। खोने का अर्थ है - मरना  और पाने का अर्थ है - नये सिरे से जीना। मौत और नया जीवन एक आँख-मिचौनी का खेल है।

मौत का मतलब है - मरना या प्राण छोड़ना। यह देने या सौंपने की क्रिया है। यह अपने मालिकाना हक को रख छोड़ने​ का तरीका है। यह अपनी अहमियत को त्यागने का ढंग है। मौत झुकने की कला है। इसके लिए अपने प्रति नम्रता चाहिए। ‘मैं’ के भाव से भली-भॉंति मुक्त हो जाना पड़ता है। कबीर के उद्गार इसी एहसास को व्यक्त करते हैं - ‘मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा; तेरा तुझ को सौंपता, क्या लागै है मेरा’। अपनी मर्जी को छोड़ने से खुदा की मर्जी हासिल होती है। तभी इन्सान नये जीवन की दहलीज पर पहुँच पाता है । नये जीवन का मतलब है - जी उठना, फि र से जीना । इसमें फिर नहीं मरने या हमेशा के लिए जीने की मंशा है । इसमें अमरता का भाव है । इसमें नई जोश है, आशा की किरणें हैं।

मौत पतझड़​ है। पतझड़​ में सभी पत्ते झड़​ जाते है, मानो सूख गया हो। लेकिन यह सब कुछ का अंत नहीं है। फिर नये पत्ते उगेंगे, उठेंगे, खिलेंगे; फिर वसन्त आयेगा, बहार आयेगी। यही नया जीवन है। जिन्दा रहते हुए मरने में मौत की असलियत खुलती है। मौत पार होने का अंदाज है। यह एक नई शुरूआत है - खुदा के अमर जीवन में शिरकत होने की। मौत शरीर के स्तर पर है और नया जीवन, आत्मा के स्तर पर। मौत ‘संसार’ का प्रतीक है, नया जीवन ‘संसार के परे’ का प्रतीक है। मौत का सबूत मिलता है, पर नये जीवन का एहसास। मौत ज़िन्दगी का परिवर्तन है, नये जीवन की ओर रूप की तब्दीली है। मौत एक इम्तहान है, जीतने की कसौटी है। यह नये जीवन की ओर ज़िन्दगी का रफ्तार है। यह अलौलिक जीवन हासिल होने तक ले जानेवाला सफर है। मौत और नया जीवन अलग-अलग नहीं हैं। वे एक सड़क​ के दो किनारे-सरीखे आपस में पूरक हैं। दोनों के मेल-जोल से ज़िन्दगी की हकीकत बनती है। ज़रूरत इस बात की है- जीवन को एक नजर में देखने-समझने-महसूस करने का सहज और दैविक अंदाज। मौत से नये जीवन की पक्रिया में सदैव बने रहने में ही इन्सानी ज़िन्दगी की कामयाबी निहित है, इसी में उसकी सार्थकता भी ।

‘मौत से नये जीवन की ओर’ का निचौड़ हैं - ज़िन्दगी में ऐसा मरें कि हमेशा के लिए जी सकें। ऐसा जीयें कि कभी मरें नहीं। शरीर के स्तर पर नहीं जीयें, आत्मा के स्तर पर जीयें। खुद की मर्जी छोड़ दें और खुदा की मर्जी से चलें। निजी धुन को त्याग दें और ईश्वर की चेतना में रहें। खुद के लिए मरें और दूसरों के लिए जीयें। खुद में न जीयें, दूसरों में जीते रहें। अपने आप को भूल जायें, दूसरों को याद करें, दूसरों द्वारा याद किये जायें। दूसरों की ज़रूरत को तरजीह दें। खुद नुकसान उठाकर भी दूसरों की मदद करें। खुद दर्द भोगकर भी दूसरों को खुशी दें। दूसरों को ज़िन्दगी में बढ़ते और तरक्की करते देखकर खुशियाँ मनायें। प्यार-मुहब्बत, भाईचारा और सेवा से एक-दूसरे की ज़िन्दगी को निखारने में लगे रहें। यह नज़रिया: ‘मौत से नये जीवन की ओर’ महात्मा ईसा के जीवन की हकीकत थी। हर ईसाई की ज़िन्दगी की बस यही राह है। हर इन्सान की ज़िन्दगी की बुनियादी प्रक्रिया भी शायद यही है। इन्सानी ज़िन्दगी को सार्थक बनाने के लिए, बेहतर समाज के निर्माण के लिए, इन्सानियत की गुणवत्ता को हासिल करने के लिए और अमरता की ऊँचाइयों को  छूने के लिए - यही असरदार खुराक है।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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दैनिक अलिगढ़ नगरी, अलिगढ़ -- 28 मार्च 2002 को / दैनिक जागरण, कानपुर -- 29 मार्च 2002 को प्रकाशित

 

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