फील गुड की राजनीति

 

फील गुड की राजनीति

डॉ. एम. डी. थॉमस

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हाल ही में रेल गाड़ी में सफर करते समय किसी युवा आदमी को ऐसा कहते हुए मुझे सुनने को मिला, ‘जिस जगह राजनीति घुस गयी हो, यों समझिए, वह जगह बर्बाद हो गयी है।’ यह सुनकर मुझे बेहद ताज्जुब लगा। युवा पीढ़ी ने राजनीति और राजनीतिज्ञों को कितनी गहराई में समझ रखा है! मुझे पूर्व चुनाव आयुक्त श्री लिंगदोह की बात याद आयी। उन्होंने राजनीतिज्ञों की तुलना कैंसर से की थी। जिस ढंग से कैंसर एक लाइलाज बीमारी है, ठीक उसी प्रकार राजनीतिज्ञों ने भी देश को ऐसा बीमार कर रखा है कि उससे छुटकारा पाना नामुमकिन लगता है। ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोग लोग मानव समाज की सबसे गन्दी चीज़ के पर्यायवाची के रूप में करते रहते हैं। यह बात आम लोगों की बातचीत तक उतर कर आयी है कि राजनीति से समाज का असली खतरा है।

गुजरात में जब मोदी सरकार का साम्प्रदायिक ताण्डव चल रहा था, राष्ट्र के प्रधानमंत्री महोदय वाजपेयी जी ने मोदी जी को राष्ट्रधर्म की नसीहत दी। ज़ाहिर है कि जान बूझकर​ मज़हबी राजनीति खेलने वाले मोदी जी पर इस नसीहत का कोई असर नहीं पड़ा। नसीहत देने वाले प्रधानमंत्री जी का भी मौके का फायदा उठाने से बढ़कर​ कोई इरादा नहीं था। यों समझना चाहिए, मोदी जी और वाजपेय जी मज़हबी राजनीति के दो खिलाड़ी थे। दोनों को अपने-अपने काम से मतलब था।

कुछ समय से ‘फील​ गुड’ के नारे लगाये जा रहे हैं। यह ‘फील​ गुड’ शासक वर्ग के राजनीतिज्ञों की एक नवीनतम चाल है। यह खास तौर पर देश की आम जनता द्वारा भुगतती जा रही ‘फील​ बैड’ की हकीकत को छिपाने के लिए अपनाया गया एक कुतन्त्र है। कल्पना मात्र खराब माहौल ख़ुशनुमा नहीं हो सकता। ‘सब कुछ ठीक-ठाक है’ — ऐसा आभास कराने मात्र से कोई यकीन करेगा, ऐसा सोचना बेवकूफी ही है। देश के नागरिकों के साथ इससे बड़ा धोखा क्या है?

गिरगिट का करिश्मा है, वह जहाँ बैठता है वहाँ का रंग धारण करता है। माहौल के मुताबिक अपना रंग बदलकर वह अपनी सुरक्षा करता है। अब भारत के राजनीतिज्ञ, खास तौर पर वे, जिनके हाथ में शासन का बागडोर है, गिरगिट से भी तेज रफ्तार में मौके के मुताबिक अपना रंग बदलने में माहिर हो गये हैं। उनके नारे बार-बार बदलते हैं। राजनीतिज्ञों के वक्तव्यों का मकसद लोगों को भड़काना मात्र है। देश की भलाई से उनका कोई लेना-देना नहीं है। लोगों को सुनने में जो अच्छा लगे वे वही कहा करते हैं। गिरगिट की राजनीति खेल कर भारत के शीर्ष राजनीतिज्ञ अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। भ्रष्टाचार के खराब माहौल को खुशनुमा घोषित कर वे जनता-जनार्दन को ‘फील गुड’ का रसायन पिलाते और उन्हें इस लोक में स्वर्ग का अहसास कराते हैं।

देश की असली हालत से हमारे राजनीतिज्ञ वाकिफ  नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता। वे काले पर सफेद रंग पोतकर भद्दे को आकर्षक बनाने का ढोंग रचते हैं। कुछ दिन पहले की ही बात है। ‘घर वापसी’ की राजनीति की चपेट में नहीं फँसने वालों को साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा जबरदस्ती से सिर मुँडवाया गया। दूसरे मजहब के सदस्य होने के कारण छेड़ने-हत्या करने तथा दंगा-फसाद करने-करवाने की बहुत घटनाएँ कुछ सालों से होती रहती हैं। ऐसी गिरी हुई हरकतों द्वारा भारत की इज्जत दुनिया के दूसरे देशों के सामने ही नहीं, भारत के भी नेक इन्सानों के सामने धूमिल हो चुकी है।

साथ ही, भारतीय सँस्कृति और उदय का डंका पीटने वाले राजनीतिज्ञ और धर्म-नेता ‘विविधता में एकता’ का नारा तो लगाते हैं। लेकिन वे भारतीय समाज को टुकड़े-टुकड़े करने पर ही तुले हैं। बहुदेशीय कम्पनियाँ गरीबों को जीने के हर से वंचित करने की दिशा में उत्तरोत्तर बढ़ते हैं। विकास की योजनाओं का फायदा, खासकर उच्च वर्ग के लोंगों को ही मिलता है। सामजिक बुराइयाँ समाज को कई प्रकार से खायी जा रही है।

भारतीय समाज की ऐसी हालत में गिरगिट की मानसिकता से ग्रस्त राजनीतिज्ञ​ ‘फील गुड’ की राजनीति खेल रहे हैं। यह वास्तव में अचरज की बात है। क्या जनता देश के ऐसे ठेकेदारों को कब तक सहन कर पायेगी? क्या चुनावी नाटक में वे ताली बजाकार उन्हें सराहेगी? भारत के नागरिक दुनिया की सबसे भ्रष्ट राजनीति के लिए जिम्मेदार राजनीतिज्ञों को मुँह तोड़ जवाब देंगे, यह निश्चित है। आने वाले चुनाव में वह देश की भलाई के लिए अपना फर्ज निभाने के लिए हिम्मत जुटायेगी, यह उम्मीद है। यही है वक्त का तकाजा भी।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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 संदेश (मासिक), पटना, अंक 04, पृष्ठ संख्या 19 में -- अप्रैल 2004 को प्रकाशित 

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