ईसा एक ‘जीवन-शैली’ का नाम है

 

ईसा एक ‘जीवन-शैली’ का नाम है

डॉ. एम. डी. थॉमस

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‘ईसा-जयंती’ ईसाइयों का सबसे बड़ा पर्व है। ईसवीं सन् के अनुसार 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म-दिवस मनाया जाता है। एक दिसंबर से लेकर 24 दिनों की मानसिक तैयारी कर ईसाई लोग अपनी निजी ज़िंदगी, परिवार, समुदाय, देश और समाज में ईसा और उनके मूल्यों का एक बार फिर स्वागत करते हैं और नये साल के साथ एक नयी ज़िंदगी ही शुरू करने की कामना करते हैं। साथ ही, वे पर्व की विशेष प्रार्थनाओं में शरीक होकर पुण्यलाभ करने और ईसा की पैदाईश से जुड़ी झाँकियाँ देखने की खातिर गिरजाघर में इक्कट्ठे होते हैं। वे समूचे ईसाई समुदाय के लिये ही नहीं, सारे समाज के लिये दुआएँ माँगते हैं और एक दूसरे को पर्व की बधाइयाँ भी पेश करते हैं। इस विचार से, ईसा-जयंती ईसाइयों का, याने ईसा को ‘कुछ खास’ माननेवाले सब लोगों का, महापर्व है। 

ईसा-जयंती, असल में, ‘सर्व धर्म मिलन भाव’ का पर्व है। इस अवसर पर, दूसरे धर्म-समुदायों के लोग, खास तौर पर युवा लोग, वह भी लाखों की तादाद में, ईसा की झाँकियाँ देखने के लिये गिरजाघर आते और बालक ईसा की आशिष पाते दिखायी देते हैं। यह घटना सिर्फ शहरों की ही नहीं, नगरों और गाँवों की भी है। इतना ही नहीं, जहाँ एक ओर अन्य समुदायों के लोग अपने से जुड़े ईसाइयों को पर्व की बधाइयाँ देते हैं, वहाँ दूसरी ओर ईसाई भी अपने से जुड़े अन्य समुदायों के लोगों के साथ प्यार-भावना के प्रतीक के रूप में ‘केक’ साझ करते हैं। ये बातें आधुनिक समाज की एक बड़ी खासियत के रूप में उभरती दिखायी दे रही है। कुल मिलाकर यह नजारा ‘सर्व धर्म सद्भाव’ की एक जबर्दस्त मिसाल है। एक सर्वे के मुताबिक, ईसा-जयंती ही वह पर्व है जो, भारत के बाहर ही नहीं, भारत में भी, सबसे ज्यादा लोगों को एक दूसरे से जोड़ता है। इसी में इस पर्व की सार्थकता बखूबी झल​कती है।

‘ईसा’ नाम में एक सार्वभौम अर्थ छिपा हुआ है। ‘ईसा’ शब्द ‘येहोशुआ’ या ‘जोशुआ’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘ईश्वर खयाल करता है’ या ‘ईश्वर मुक्ति देता है’। ‘ईसा’ शब्द का एक दूसरा स्रोत ‘इम्मानुएल’ है, जिसका मतलब है ‘ईश्वर हमारे साथ है’। ईसा के समय में ईश्वर को दूर दराज की कोई निराकार सत्ता के रूप में मानने की परंपरा चल रही थी। लेकिन, ईसा ने ईश्वर को इंसान के ‘बेहद करीब’ ही नहीं, उसके भीतर मौजूद सबसे ‘घनिष्ठ साथी’ के रूप में घटित किया। ओर तो ओर, वह खुदा ‘पिता’ सरीखा है, जिसके साथ ‘बेटा-बेटी’ जैसा रिश्ता कायम किया जा सकता है। मतलब है, खुदा से डरने की कोई जरूरत नहीं है। उसके साथ औलाद की हैसियत से सहज रूप से जुड़ने की ‘आजादी और नजदीकी’ का भाव है। पते की बात यह है कि ‘खुदा, खुद से भी ज्यादा, खुद से नजदीक’ है और ‘खुदा और खुद के दरमियान बाप-बेटे की रूहानी धागा मौजूद है’, यही ईसा नाम और शख्सियत दोनों का अहम् संदेश है। ईसा का करिश्मा यह रहा कि उन्होंने इन्सान को ‘खुदा कौन है’ इस राज़ का एहसास कराया, जो कि किसी भी परंपरा की हद में कैद नहीं हो सकता। ईसा-जयंती इस हकीकत का यादगार समारोह है।       

ईसा की असली शख्सियत ‘पंथ-निरपेक्ष, समय-निरपेक्ष और स्थान-निरपेक्ष’ है। ईसाई समुदाय से जाहिर तौर पर एक गुनाह हुआ है, जो कि बीस शताब्दियों से संचित होकर अभी भी बना हुआ है। वह यह है कि ईसा को ईसाई धर्म के प्रवर्तक मानकर उन्हें बहुत कुछ अपनी निजी बपौती मान कर रखा है। लेकिन यह बात सरासर गलत है। सच्चाई यह है कि ईसा ने किसी धर्म का प्रवर्तन नहीं किया था। ‘ईसा ईसाई नहीं’ है, वे कभी थे भी नहीं। ईसा ने ‘पिता’ के रूप में जिस ईश्वर से इन्सान को रू-बरू कराया था वह ईश्वर भी ‘ईसाई ईश्वर नहीं’ है। वह हर इन्सान का ईश्वर और पूरे कायनात का मालिक है। आखिर ईसाई का क्या औकात है कि वह ईसा को ‘ईसाई’ कहकर बपतिस्मा दे! ईसा का रिश्ता हर इन्सान और जीव से था, है और रहेगा। ईसा अन्य पैगंबरों, नबियों तथा दैव-दूतों की तरह ‘इन्सानी समाज की साझी धरोहर’ है। ईसा से अपनी इस आजादी को छीनकर उन्हें एक संप्रदाय में कैद करना ईसा के साथ ही नहीं, मानव समाज के साथ भी ना-इन्साफी है। सच तो यह है कि जीने का उनका अंदाज मानववादी और रूहानी था। ईसा अपने आप में इन्सानी ज़िंदगी का एक ‘नया नजरिया है, विचारधारा है, परंपरा है और जीवन-शैली’ है। उनकी तालीम सब सीमाओं से परे हर इन्सान के लिए एक ‘रूहानी रौशनी है, ऊर्जा है, प्रेरणा है, ताकत’ है, जो ज़िंदगी के सफर को सुचारू रूप से तय करने के लिये पाथेय है।    

ईसा एक ‘खुशखबरी’ है, जो हर इन्सान को कुछ-न-कुछ दे जाने की क्षमता रखती है। वे बीमारों के लिये चंगाई हैं, कैदियों के लिये रिहाई हैं और खोयेहुओं के खोजकर्ता हैं। वे भूखों का खाना हैं, प्यासों का पानी हैं और पनाहहीनों की रिहाइश हैं। वे अधूरों की पूर्णिमा है, बिखरे हुओं के संयोजक हैं और राहगीरों के संकेत-चिन्ह हैं। वे हताशों के लिये उम्मीद हैं, गुनहगारों के लिए आईना हैं और नासमझों के लिए ज्ञान हैं। ईसा हाशिये पर सरकाये हुओं के लिये मुख्य धारा की ओर ले जाने वाली राह हैं, कमजोरों के लिये ताकत हैं और आवाजहीनों के लिये आवाज हैं। वे चेलों के रहनुमा हैं, सीखनेवालों की तालीम हैं और मुसाफिरों के सह-यात्री हैं। वे पद-दलितों की उठान हैं, दर्द भोगनेवालों के लिये सांत्वना हैं और मुर्दों के लिये नया जीवन हैं। वे थके हुओं के लिये आराम हैं, भटकेहुओं की दिशा हैं और बोझ् से दबे हुओं का सहारा हैं। वे सब के लिये सब कुछ हैं और जिसको जो चाहिये वह देनेवाले हैं। ईसा अपने नजदीक आनेवाले हर एक के लिये एक ‘खुशखबरी’ साबित हो जाते हैं। फकत ईसा में मौजूद ‘मसीहा’ को पहचानने की समझ की जरूरत है, उन्हें परखने के विवेक की जरूरत है और उनके पद-चिन्हों पर चलकर अपने जीवन को धन्य बनाने की किस्मत की जरूरत है।

ईसा-जयंती का अहम् पैगाम है, प्यार, सेवा, माफी, भाईचारा, ताल-मेल और शांति। ये बातें ईसा द्वारा जिये और दिये हुए इन्सानियत के मूल्य हैं। ये मूल्य ईसाई समुदाय के कतई मोहताज नहीं है। ये सब इन्सानों पर बराबर लागू होते हैं। ईसा का सबसे प्रिय शिष्य ईसाई हो, यह कदापि दरकारी नहीं है। वह उनके मूल्यों पर अमल करनेवाला शख्स ही होगा, बरू वह किसी मजहब का सदस्य हो या न हो। ईसा की तालीम ही इस बात का गवाह है। उनका कहना है कि ‘प्यार सिर्फ पड़ोसी से नहीं, वरन् दुश्मन से भी’ हो। वजह यह है कि ‘पिता’ ईश्वर भलों और बुरों के बीच फर्क नहीं करता है, बल्कि सूरज की रौशनी और बारिश का पानी दोनों को बराबर देता है। बेहद जुर्म झेलने के बाद भी सलीब पर टंगे होकर ‘हे, पिता! इन्हें माफ कर, ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं’ कहकर ईसा ने अपने कसूरदारों के लिये माफी की अनूठी मिसाल पेश की। गुरु होकर भी उन्होंने अपने चेलों के सामने घुटने टेक उनके पैर धोकर सेवा की एक अजब नजीर भी कायम की और ‘तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिये’ यह नसीहत दी।

साथ ही, ‘भाई इन्सान के लिये जो कुछ किया जाता है, वही पिता ईश्वर के लिये किया जाता है’ इन शब्दों से ईसा ने यह एलान भी किया कि ‘भाईचारे के व्यवहार’ में ही ‘खुदा की इबादत’ मुकम्मल होती है। ‘जैसा व्यवहार तुम दूसरों से चाहते हो, वैसा ही व्यवहार उनके साथ भी किया करो’ यह है शख्स और समुदाय के स्तर पर आपसी ताल-मेल का हकीम ईसा द्वारा लिखा हुआ नुस्खा। इसी क्रम में, शांति उसी को नसीब होती है जिस पर खुदा मेहरबान होता है। फिर भी, जो प्यार, सेवा, माफी, भाईचारा और ताल-मेल की राह में ज़िंदगी और खुदा को साधने की कोशिश करता हो, शांति उसे ही हासिल होती है। अपनी कथनी और करनी के जरिये ईसा द्वारा प्रस्तुत इन्सानी ज़िंदगी की उपर्युक्त रूपरेखा से जाहिर है कि ईसा एक व्यक्ति का नहीं, एक समग्र जीवन-शैली का नाम है, जिसका कोई पंथ नहीं हो ही नहीं सकता। ईसा-जयंती इन्सान के लिये वह सालाना मौका है जब इन्सानी और रूहानी मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा को मजबूत और इजहार कर बेहतर समाज को बनाने में योगदान दिया जा सके।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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हिन्दुस्तान (दैनिक), नयी दिल्ली, पृष्ठ संख्या 11 में -- 23 दिसंबर 2014 को प्रकाशित 

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