लघुकथा एक अनन्य विधा

 

लघुकथा एक अनन्य विधा

डॉ. एम. डी. थॉमस

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साहित्य के दो अर्थ होते हैं — ‘स-हित’ का भाव और ‘सहित’ का भाव। तात्पर्य है, ‘हित’ का भाव और ‘साथ’ होने का भाव दोनों का सम्मिश्रण ही साहित्य है। असल में, समाज के हित में सोचना और समाज के साथ चलना साहित्यकार का दायित्व है। यदि समाज के हित-भाव में साहित्यकार का बुद्धि-पक्ष विशेष रूप से प्रतिबद्ध है तो साथ-भाव में उसका हृदय-पक्ष। दोनों भावों की सम्मिलित धारा में ही लोक-संग्रह का लक्ष्य संपन्न होता है। न्यूनाधिक मात्राओं में साहित्य की सभी विधाओं पर यह बात पूरी तरह से खरी उतरती है।

साथ ही, साहित्य की दो दिशाएँ होती हैं — गद्य और पद्य। दोनों का स्वभाव अलग-अलग अवश्य है। फिर भी, उन्हें एक दूसरे से अछूता नहीं रहना चाहिये। वे सिक्के के दो पहलू के समान आपस में पूरक हैं। गद्य कुछ पद्यमय हो और पद्य कुछ गद्यमय हो, इसमें दोनों की सार्थकता है। इस विचार से यह कहा जा सकता है कि कथा काफी हद तक गद्य और पद्य का मिलन-बिंदु है। हालांकि एक विधा के रूप में कथा गद्य में शामिल है, उसमें काव्य-भाव घुला-मिला है और कथा में इस काव्य-भाव की मात्रा अन्य विधाओं की तुलना में अधिक भी है। इस लिये साहित्य की बहुविध विधाओं में कथा का अहम् स्थान है।

कथा साहित्य की समस्त धाराओं में, खास तौर पर गद्य की, सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। कथा का अंदाज़ सहज, काव्यमय और स्वाभाविक है। वह हर पाठक के लिये प्रिय और स्वीकार्य होती है। कथा में दिमाग और दिल दोनो पहलू समान रूप से सक्रिय हैं। कथा का कथानक और कहने का लहजा दोनो मिल-जुल कर पाठक को अपनी गिरफ्त में लेते हैं। वास्तव में, यह प्राचीन और लोकप्रिय विधा मानव संस्कृति की शुरूआत से ही इन्सान की काल्पनिक शक्ति की जगत में किसी-न-किसी प्रकार से रही है। यह अभिन्न रूप से इस संस्कृति का अंग भी है। कथा की खूबियों की चरम सीमा ‘लघुकथा’ में प्रतिफलित होती है।

लघुकथा एक ऐसी अनोखी विधा है, जो कम समय में पाठक को एक सटीक सीख, वह भी बड़े सरस ढंग से, प्रदान करती है। हृस्वता इसका बाह्य रूप है, सरसता इसका भातरी रूप और कथानक में समाया हुआ संदेश इसकी सोद्देश्यता है। लघुकथाकार उस नर्स की तरह है जो हँसी-मजाक करते हुए मरीज को बड़े सरल भाव से इस प्रकार सुई लगाती है कि मरीज को पता ही नहीं चलता कि नर्स ने कब उसके शरीर पर सुई लगायी। लघुकथा पाठक के ध्यान को इस ढंग से बाँधे रखती है कि एक बार पाठक ने कथा पढ़ना शुरू किया तो तब तक वह उस पर चिपका हुआ रहता है जब तक कथा खत्म नहीं होती। इतना ही नहीं, लघुकथा के पूरे होने पर पाठक गहन सोच की दुनिया में चला जाता है कि कथा की सीख उस पर अनायास ही ऐसी चोट पहुँचाती है जो उसे बदलाव की पटरी पर प्रवृत्त करती है। ‘बेहतर इन्सान होने का संस्कार’ हासिल करना ही लघुकथा का सुखद परिणाम है।            

‘भारत के लघुकथाकार’ नामक पुस्तक में सम्मिलित लघुकथाकरों की लघुकथाएँ एक से बढ़कर​ एक श्रेष्ठ हैं। उन्होंने मानव जीवन के भिन्न-भिन्न संदर्भों को लेकर अपनी-अपनी कल्पना के महासागर में गोता लगाया है और मोतियों को इक्कट्ठा कर पाठकों के सामने परोसा है, इसमें कोई शक नहीं है। साथ ही, ‘गागर में सागर’-रूपी इस संकलन में कथानक की विविधताओं के साथ-साथ समाज के सामने एक बहु-आयामी संदेश सरस अंदाज़ में ही पेश हुआ है। भारत देश के इन प्रतिष्ठित लघुकथाकारों ने इस पुनीत कार्य के द्वारा अपनी उर्वर कल्पना-शक्ति का परिचय दिया ही नहीं, हिंदी साहित्य और साहित्य-प्रेमियों के साथ-साथ भारत की आम जनता के लिये अमर और सराहनीय योगदान दिया भी है।               

‘भारत के लघुकथाकार’ नामक पुस्तक के लिये श्री अवधेश कुमार मिश्र और श्री अमरेंद्र कुमार मिश्र मुक्त कंठ से प्रशंसा के पात्र हैं। आप दोनो हिंदी साहित्य की सेवा में हृदय से प्रतिबद्ध और निरंतर प्रयासरत हैं। उदात्त विचारों को आकर्षक और लोकप्रिय शैलियों में लोगों के घर-घर पहुँचाना आप दोनों का जीवन-लक्ष्य है। साहित्य की किसी भी विधा को आप लोगों ने अछूता नहीं छोड़ा है। साहित्य और आप लोगों का जीवन एक दूजे के पर्यायवाची हो गये हैं, ऐसा कहने में मुझे कोई अतिशयोक्ति नहीं लगती है। आप दोनों द्वारा संयुक्त रूप से रचित साहित्यिक माला में पिरोयी गयी मोतियों की ऋंखला में एक अहम् मोती है ‘भारत के लघुकथाकार’। उभरते हुये इन महान साहित्य-साधकों की सम्मिलित यात्रा विचारक, लेखक, संपादक, प्रकाशक, आदि बहुविध आयामों में अविरत बढ़ती जाये और बुलंदियाँ छू सके, यही मेरी मंगल कामनाएँ हैं। मेरा पूरा विश्वास है कि पाठक इस पुस्तक का हृदय से स्वागत करेंगे और इसमें संकलित कथाओं और कथाकारों से असीम रस और प्रेरणा हासिल करेंगे तथा इस प्रकार ‘गगन स्वर प्रकाशन’ का प्रयास सार्थक साबित होगा।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p). 

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भारत के लघुकथाकार (पुस्तक), गगन स्वर, गाजियाबाद, पृष्ठ संख्या XXIV-XXVI -- मार्च 2013 में प्रकाशित   

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