वही है ईसाई

 

वही है ईसाई

डॉ. एम. डी. थॉमस

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इतिहास के पन्ने गवाह हैं, दो हजार साल पहले करीब इन्हीं दिनों ईसा नामक एक इन्सान शहीद हुए थे। ईसाईयों की धर्म पुस्तक बाइबिल में जो कहानी पढऩे को मिलती है उसके मुताबिक उनकी शहादत की घटना कुछ अजीब-सी थी, अनूठी भी। वे कोई आम इन्सान नहीं थे। उनकी पैदाइश, उनके चमत्कार, उनके कार्य, उनकी तालीम, उनकी मृत्यु—ये सब यही सबूत देते हैं। जिसने उन्हें करीब से देखा-जाना हो, उसने माना भी है कि वे कोई अनोखे महामानव थे।

इन दिनों दुनियाभर के ज्यादातर ईसाई सजग हैं। ईसा में अपनी आस्था रखने वाले और उनको अपने गुरु और प्रभु मानने वाले गिरज़ाघरों में इकट्ठे होकर उनकी जि़दगी की आखिरी घड़ी को याद कर रहे हैं और उनसे जुड़ी हुई शाश्वत रहस्यों पर मनन कर रहे हैं। उस कड़वी सच्चाई के आलोक में, जो इन रहस्यात्मक घटनाओं को निचोड़ने से मिलती है, अपनी निजी ज़िन्दगी की मरम्मत हो और अपने जीवन की असली राह खुल जाय, यह हर ईसाई की कोशिश है। जो इस दिशा में अपनी चेतना को जगा सके, ऐसी साधना से बेहतर इन्सान बन सके, और राह चलते दूसरे मुसाफिरों को, चाहे वह किसी भी मजहब का सदस्य क्यों न हो, अपना सफर तय करने में मदद कर सके — वही है ईसाई!

ईसा का कोई मतलब नहीं था। उन्होंने कोई मजहब बनाया भी नहीं। हाँ, यह बात जरूर है कि उनको ईश्वर में पिता नजर आता था और खुद को उसके बेटे के रूप में महसूसते थे। वह चाहते थे, कोशिश भी करते थे कि दुनिया का हर इन्सान यह अहसास करे कि मैं खुदा का बेटा या बेटी हूँ। अपनी बुनियादी पहचान में सभी शरीक हों, खुदा की औलाद होने की जागरूकता सबको मिले, यही उनका संकल्प था, मिशन था। मतलब यह है — खुदा समूची मानव जाति के लिए बाप या माँ समान हैं और सभी इन्सान एक-दूसरे के लिए भाई-बहन जैसे भी। ज़िन्दगी का यह विशिष्ट नजरिया हरेक के लिए हकीकत बन जाये — जीने का सही अन्दाज बस यही है। हर इन्सान दूसरे को अपना हमसफर समझे, उसका साथ निभाये, उसके लिए जीये-मरे, उसको जिलाये-बढ़ाये-वाह! इन्सान की ज़िन्दगी में इससे बड़ी भला क्या तमन्ना हो सकती है! यह सीधी-साधी तमन्ना थी महामानव ईसा की। यह तमन्ना जिसकी है, जो इसे एक जीवन-मिशन में अमल करे — वही है ईसाई!

ऐसी तम्मना और मिशन किसी की बपौती नहीं है। किसी यहूदी आधार पर नाम धारित करने से, किसी खास परम्परा या रीति-रिवाज में ढलने से, किसी संस्कृति या विशिष्ठ पहनावे को अपनाने से या किसी  धर्मसंघ में दीक्षित होने से इस मिशन में कामयाब हो, यह जरूरी नहीं है। ईसा अपने आप में एक परम्परा है। यह परम्परा किसी चहारदीवारी में बँधी हुई नहीं है। ईसा स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण जीवन-शैली हैं। क्या तुम असल में जीना चाहते हो? तो मरना जरूरी है। एक-दूसरे के लिए मरें, जिससे दूसरे को एक नयी ज़िन्दगी मिले, जिससे उसकी ज़िन्दगी सुजारू रूप से चले। सार्थक जीवन जीने के इस तरीके पर ईसा ने अमल कर दिखाया। उन्होंने अपने आप को सलीब पर समर्पित किया, लेकिन वे जी उठे सबके लिए शाश्वत जीवन और अमरता की राह दिखाकर। स्पष्ट है, ऐसी आदर्श जीवन-कहानी किसी भी मजहब या सम्प्रदाय की सीमाओं से परे प्रतिष्ठित है। समर्पण से नये जीवन की ओर चलने के इस चुनौतीपूर्ण आमन्त्रण को रोजमर्रा की ज़िन्दगी में कबूलने तथा उस पर अमल करने की ताकत जिसमें है — वही है ईसाई!

ईसा इन्सानियत की सीढ़ियाँ चढ़कर खुदापन की ऊँचाइयों को छूने वाले महान इन्सान थे। धर्म के मर्म को उनसे बढ़कर भला कौन जान सकता है! अपने समय के धार्मिक नेताओं के पाखण्डपूर्ण अनुष्ठानों तथा शासकों की बेईमानी की कलई खोलकर रखने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने आपको धार्मिक दिखाकर उससे प्राप्त झूठी इज़्जत इठलाने के खोखले मोह में धर्म और अधर्म का आपसी फासला ही खत्म हो गया, यह बात वे समझ नहीं पाये। खुदा के नाम पर चल रही यह नाटकबाजी और इन्सान के साथ हो रहा खिलवाड़ ईसा को कतई बर्दाश्त नहीं हो रहे थे। उन्होंने कर्मकाण्ड आदि के भीतरी परतों में सदियों से गहरी जमी हुई धर्म की गन्दगी और दाग पर जबर्दस्त उजाला फेंकने का बीड़ा उठाया। ईसा के इस रवैये से खास तौर पर धार्मिक नेताओं तथा शासकों को करारा झ्टका लगा। ईसा उनके अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा साबित हुए। उनको लगा ईसा को खत्म करने में ही अपनी रक्षा निहित है। साजिश के मुताबिक उस समय चल रहा मौत का सबसे निन्दनीय तरीका ईसा के लिए पेश किया गया। किन्तु ईसा खत्म कहाँ हुए! वे आज यहाँ फिर अवतरित होते तो सभी मजहबों में, चाहे उनके ही नाम पर रहे मजहब में ही क्यों न हो, विद्यमान पाखण्ड को कड़े-से-कड़े शब्दों में ललकारते और उसके विरूद्ध डटकर आन्दोलन चलाते। धर्म की आड़ में पल रहे अधर्म के कारण कराहती और घुट-घुट कर मर रही इन्सानियत को छुटकारा दिलाने के लिए जो हिम्मत रखता हो — वही है ईसाई!

ईसा को किस-किस प्रकार दु:ख भोगना पड़ा, उनकी मौत की यात्रा कितनी दर्दनाक रही, इसका अन्दाजा तक लगाना नामुमकिन है। उन पर थूका गया, उनको झपड़ मारा गया, उनकी हँसी उड़ायी गयी, उनके हाथ-पैरों पर कीलें ठोंकी गयीं, उनकी मौत के लिए सलीब-जैसी शर्म की चीज इस्तेमाल की गयी। दो हजार साल पहले तत्कालीन धर्म और समाज के ठेकेदारों द्वारा ईसा को ऐसी ऐतिहासिक पीड़ा दी गयी थी, इससे आज क्या हमें कुछ लगता है? वर्तमान समय में हमें बराबर खबर मिलती ही रहती है कि हजारों-लाखों निर्दोष इन्सान बेरहम, बेइन्साफी, बदतमीजी, हत्या, गलतफहमी, द्वेष, गरीबी, भूख, बदनामी, पीड़ा आदि के शिकार होते रहते हैं। जिस इन्सान को लगे कि ये सब अपने साथ हो रहे हैं, जिनके दिल में इन बदकिस्मत भाई-बहनों के साथ ऐसी हमदर्दी महसूस हो रही है कि रहा नहीं जा सकता, जो उनको किसी भी प्रकार से राहत पहुँचाने के लिए कमर कसे और कदम से कदम मिलायें, चाहे वह किसी भी मजहब का सदस्य क्यों न हो — वही है ईसाई!

सलीब पर इस दुनिया का सबसे दर्दीला अनुभव पाकर बेहद गम से तड़पते और दम तोड़ते हुए ईसा नें अपने अपराधियों के लिए जगजाहिर, बेमिसाल प्रार्थना की थी—‘‘पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।’’ क्षमा एक ईश्वरीय गुण है। जो बेकसूर है वही क्षमा कर सकता है। यह किसी आम इन्सान की बात नहीं है। ईसा की क्षमा अपने आप में मानवीय इतिहास की एक सर्वोत्तम मिसाल है। यह हर इन्सान के लिए एक अचूक प्रेरणा है, चुनौती भी है। क्षमा अपनी इन्सानियत की गुणवत्ता को मापने की कसौटी है, अपनी आध्यात्मिक ऊँचाई को तौलने का तराजू भी। कितने इन्सान हमारे समाज में निकलेंगे जिनके लिए क्षमा के ईसा-स्तर तक पहुँचना तो बहुत दूर की बात है, कम-से-कम उसके करीब तक पहुँचने की क्षमता रखते हों? जब-जब दूसरे इन्सानों के हाथ, चाहे वे अधिकारी हों या गैर-अधिकारी, तिरस्कृत, पीडि़त, दलित, और दीन-हीन होना पड़े, स्वार्थ जलन, भेद-भाव व शोषण के कारण कष्ट एवं दुख सहना पड़े, अत्याचार और अन्याय का बदकिस्मत शिकार होना पड़े, तब-तब जो इन्सान सहज भाव से, प्रेमभाव से, अपने दिल से आशीर्वाद स्वरूप यह कह सके, ‘पिता! इन्हें क्षमा कर, ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं’- वही है ईसाई! ईसा के पद्-चिह्नों पर ऐसे चलने वाले — वही है ईसाई!

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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सन्देश (मासिक), पटना, अंक 04, पृष्ठ संख्या 05-06 में -- अप्रैल 2000 को प्रकाशित  

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