सर्वधर्मभाव ही धर्म है

 

सर्वधर्मभाव ही धर्म है

डॉ. एम. डी. थॉमस

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‘मधुमक्खी’ प्रकृति का एक बेहद विलक्षण और प्रेरणादायक जीव है। यह जीव वास्तव में खुदा की एक अनोखी रचना है। सारी सृष्टि में इस जीव का कोई मुकाबला नहीं है। इन्सान का आदर्श जीवन क्या और कैसा हो, इस विषय पर यह जीव एक खूबसूरत नक्शा पेश करती है। इस नक्शे में निहित अनूठी सीख के लिये यह जीव बेशकीमती साबित होती है। सामाजिक जीवन को बहुआयामी और अधिक कल्याणकारी बनाने के लिये इस जीव से सीखना बहुत ही फायदेमंद होगा।

‘शहद’ से मधुमक्खी की पहचान बनती है और यह इस लिये है कि उसकाजीवन-क्रम एक उल्लेखनीय विशिष्टता से लैस है। यह फूल-फूल में जाकर मकरंद चूसकर ग्रहण करती है। हर फूल से इसे बहुत ही थोड़ा-थोड़ा रस मिलता है। अपने गुजारे के लिये इसे सैकड़ों फूलों में जाना पड़ता है। कड़ी मेहनत करके यह जीव अपने छत्ते में शहद इक्कट्ठा करती है। यह जगजाहिर बात है कि शहद का मिठास सहज, अनोखा और मनमोहक है। उसमें बच्चों से लेकर बूढ़ों तक की तंदुरुस्ती के लायक बहुत गुण मौजूद हैं। बीमार लोगों को भी इसका मिठास फ़ायदा ही करता है। कतिपय चिकित्सकीय नुस्खों में भी शहद ने अपनी जगह पायी है। 

‘मधुमक्खी और शहद’ के संदर्भ में पते की बात यह है कि यदि मधुमक्खी एक ही प्रकार के फूल के रस से शहद बनाती, तो उसमें वह मिठास और गुण नहीं होते जो अन्यथा होते हैं। तरह-तरह के बेशुमार फूलों के रस के मिश्रण से ही शहद की अनूठी खासियत बनी हुई है। हर किस्म के फूल की बनावट अलग है, आकार अलग है, खूबसूरती अलग है, खुशबू अलग है, गुणवत्ता अलग है, रस का जायका अलग है, आदि-आदि। मधुमक्खी का अनूठा करिश्मा है जो उन ‘विविधताओं में समरसता’ कायम करता है। नतीजतन, शहद सारी दुनिया में ऐसी एक चीज़ है, जिसकी कोई सानी नहीं है। शहद की गुणवत्ता के श्रेय का अधिकारी जाहिर तौर पर मधुमक्खी ही है। मधुमक्खी की खासियत ‘गुणग्राहिता’ या ‘सर्व-गुणग्राहिता’ है, जो कि समृद्धि की दिशा तय करती है। वह सब तरह के फूलों से गुण-रस एकत्र करने की क्षमता रखती है, जो कि उसके स्वभाव की पैदाइशी श्रेष्ठता और गरिमा है।  

‘धर्म और धार्मिक’ भी असल में शहद और मधुमक्खी के समान हैं और ऐसा होने में उनकी प्रासंगिकता है। आम लोग, जो धर्म के भीतर मौजूद दिव्य तत्व से वाकिफ नहीं हैं, उसके गुलाम बनानेवाले और एक दूजे से अलग करनेवाले लौकिक सिद्धांतों, अनुष्ठानों और रस्मों में फँसे रहते हैं। उन बेचारों से धर्म के आजाद करनेवाले और एक दूसरे के करीब लानेवाले अलौकिक एहसासों की उम्मीद भला कैसे हो सकती है! परंतु, असली धर्म की दीवारें नहीं होती हैं। आस्था या श्रद्धा या विश्वास ही धर्म की आत्मा है, जो चहारदीवारियों में कैद नहीं हो सकती। आस्था एक खुली भावना है, जो हवा-सरीखी खुले आसमान में पलती-बढ़ती है। उसका दायरा उतना ही विशाल है जितने खुदा के कायनात विशाल हैं। धर्म जुड़ने-जोड़ने का नाम है। उसमें रिश्ते का भाव है, जो किसी बिरादरी या संप्रदाय में समाहित नहीं हो सकता। वह अपने-आप में इन्सान का स्वभाव और अंतरात्मा की आवाज दोनो है। साथ ही, धर्म धारण करने का भाव है। वह दूसरे की जिम्मेदारी लेने और उसके प्रति अपना कर्तव्य निभाने की भावना है। धर्म का ताना-बाना उतना लंबा-और चौड़ा है जितना मानव समाज फैला हुआ है। धर्म एक विशाल पारिवारिक, सामुदायिक, राष्ट्रीय और सामाजिक भावना है, जो पूरे समुदाय, मुल्क और समाज को अपने में समेट लेती है। धर्म गहरे मायनों में शहद के समान सर्व-धर्मभाव है और धार्मिक मधुमक्खी के समान गुणग्राही और सर्व-गुणग्राही है।

‘सर्व-धर्मभाव ही धर्म’ है। हर एक इन्सान किसी-न-किसी धार्मिक परंपरा या सामाजिक विचारधारा में पला और बढ़ा है। कोई अपनी पैदाइशी धारा में ही जीवन-भर बहता रहे, यह बच्चों या बालक-बालिकाओं के स्तर की जिंदगी है। ऐसी जिंदगी वयस्कों को कतई शोभा नहीं देती है। बालिगों के रूप में धार्मिक होने का मतलब है सभी धार्मिक समुदायों से जुड़े रहना। अपनी परंपरा के मूल्यों को गहराई से जानने के साथ-साथ दूसरी परंपराओं के मूल्यों को भी समझ्ने की ज़रूरत होती है। अपनी परंपरा अपनी है और अन्य परंपरायें परायी हैं, यह बचकानी सोच है। सभी धारायें अपनी ही हैं। ‘एक खास तौर पर अपनी और दूसरी आम तौर पर अपनी’ यही सही भाव है। मधुमक्खी के समान हर एक धर्मी को सभी धर्म-परंपराओं की खूबियों को ग्रहण करना होगा। विविध धर्म-परंपराओं और विचारधाराओं के विशिष्ट गुणों के सम्मिश्रण से इन्सान की जिंदगी में ‘इंद्र-धनुष’-जैसी खूबसूरती और ‘शहद’-जैसा मिठास हासिल होगा। ऐसी ‘गुण-ग्राहिता’ और ‘सर्व-गुणग्राहिता’ से धर्म-भाव ‘सर्व-धर्म-भाव’ में तब्दील होता है। सर्व-धर्म-भाव से ही इन्सान की रूह का पूर्ण ‘संस्कार’ होता है। ‘रूहानियत की ऐसी तहज़ीब’ में इन्सानियत अपनी बहु-विध खूबियों से भरा-पूरा होकर निखरेगी और समाज को स्वर्ग-से एहसास से समृद्ध करेगी। सार्वभौम मूल्यों का समन्वय संतुलित इन्सानी जिंदगी का नुस्खा है। इन्सान को मधुमक्खी से प्रेरणा लेकर अपना सामाजिक जीवन तय करना होगा।  

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़​, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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संस्कारम (मासिक), नयी दिल्ली, पृष्ठ संख्या 43-44  -- सितंबर 2012 में प्रकाशित

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