हनुक्का की मोमबत्तियों से जग को रौशनी मिले
हनुक्का 2021 / 28 नवंबर से 6 दिसंबर / लेख
हनुक्का की मोमबत्तियों
से जग को रौशनी मिले
फादर डॉ. एम.
डी. थॉमस
निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि
एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली
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28 नबंबर शाम से 06 दिसंबर शाम तक यहूदी समुदाय में पर्व ‘हनुक्का’ मनाया जा रहा है। हनुक्का को ‘रौशनी का पर्व’ भी कहा जाता है। आठ दिनों के लिए सिलसिलेवार तरीके से मोमबत्ती जलाना इस पर्व की अहम् पहचान है। हनुक्का यहूदी समुदाय का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है।
हनुक्का इब्रानी पंचांग के अनुसार किसलेव के 25वें दिन आता है, जो कि ईसवीं सन् के नवंबर के अंत से दिसंबर की तरफ होता है। दिसंबर में ईसा-जयंती के पर्व की ओर हनुक्का पर्व के आने से अमेरिका आदि देशों में हनुक्का को एक सांस्कृतिक पहचान मिली हुई है। हनुक्का के दिन छुट्टी नहीं होती है, जैसे यहूदी साप्ताहिक पवित्र दिन ‘सब्बात’ को होती है। लेकिन, आठों दिन बहुत पुनीत माने जाते हैं।
हनुक्का का पर्व इस बात की याद दिलाता है कि ईसवीं सन् की दूसरी सदी में सेल्यूसिड या सिरियनी राज से मक्कबीयन यहूदियों की जीत हुई थी। साथ ही, येरुसालेम पर फिर कब्जा हासिल कर दूसरे येरूसालेम मंदिर के दोबारा अभिषेक के साथ-साथ प्राण-प्रतिष्ठा की गयी थी। इसलिए ‘हनुक्का’ शब्द का मतलब हुआ अभिषेक’ या ‘प्राण-प्रतिष्ठा’।
यहूदियों की संहिता ‘तालमुड’ में लिखा गया है कि दूसरे येरुसालेम मंदिर के अभिषेक और प्राण-प्रतिष्ठा के समय मंदिर के मिनोरा में सिर्फ एक दिन के लिए ही शुद्ध तेल था। लेकिन, ताज्जुब की बात है कि पूरे आठ दिनों के लिए मिनोरा दिन-रात जला। इसे यहूदी लोग एक खुदाई चमत्कार के रूप में मानते हैं। यह चमत्कार ही हनुक्का पर्व की प्रेरणा है।
यहूदी परंपरा के अनुसार हनुक्का मनाने के लिए पूरा परिवार एक साथ आता है। रिश्तेदार व दोस्त भी अक्सर शामिल होते हैं। हनुक्का मनाते हुए मोमबत्तियाँ जलाते हैं, वह भी रोज़ एक मोमबत्ती। ज़ाहिर है, मोमबत्तियाँ शाम ढलने के बाद रात को ही जलाये जाते हैं। हनुक्का पर्व के अवसर पर यहूदी लोग हनुक्का गीत गाते हैं और स्तोत्र संख्या 30 का पाठ भी करते हैं।
मोमबत्तियों को जलाने
का क्रम दायें से बायीं ओर होता है, जैसे इब्रानी भाषा लिखी जाती है। मोमबत्ती जलाने
के पहले उसके लिए आशिश की प्रार्थना की जाती है। क्योंकि यहोवा ने ही अपनी मेहरबानी
में यहूदियों को आशीर्वाद दिया था और चमत्कार के ज़रिये हनुक्का जलाने का आदेश भी दिया
था।
हनुक्का के समय यहूदी लोग कुछ खास पकवान बनाते हैं। मंदिर के मिनोरा के शुद्ध तेल की याद में तली हुई पकवान खाने की परंपरा है। इस समय लोग मन बहलाने के लिए कुछ खास खेल भी खेलते हैं। इस मौके पर एक दूसरे को इनाम देने की रिवाज़ भी है। पुराने समय में हनुक्का घर पर ही मनाया जाता था। लेकिन, आजकल कुछ देशों में सार्वजनिक स्थानों में भी हनुक्का मोमबत्ती जलाने की परंपरा बनी हुई है।
हनुक्का का प्रतीक ‘हनुक्किया’ है, जो कि नौ शाखा वाला दीपाधार है। इसे घर के अंदर नहीं रखते हुए घर की खिड़कियों पर रखा जाता है। एक शाखा दूसरी शाखाओं के नीचले या ऊँचे स्तर पर होती है। मिनोरा की एक खास मोमबत्ती होती है, जिसे ‘शमश’ कहते हैं और उसके द्वारा ही सभी मोमबत्तियों को जलाया जाता है।
रही हनुक्का के विषय में रस्म की बात। कोई किसी की चीज़ पर नाजायज कब्जा करे, यह कोई अच्छी बात नहीं है। कब्जे से उसे छुड़ाने के लिए किसी को विद्रोह करना पड़े, यह तो मज़बूरी होती है। लेकिन, जब अपनी चीज़ हमें वापस मिले, यह बड़ी खुशी की बात भी होती है। येरुसालेम और मंदिर को वापस पाकर मक्कबीयन यहूदियों को बहुत खुशी मिली थी। हनुक्का में ऐसी खुशी छिपी हुई है। साथ ही, हनुक्का का पैगाम है, हर कोई किसी की भी चीज़ को हड़पने से बचे रहे।
इसके अलावा, मंदिर के ‘अभिषेक’ और ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ का मतलब है, मंदिर को ईश्वर की मौज़ूदगी के प्रतीक के तौर पर अंगीकार करना। मंदिर में ईश्वर के मौज़ूद होने का मतलब है, यहूदी लोगों के निजी और सामुदायिक जीवन में ईश्वर की मौज़ूदगी को मनाना। येरुसालेम मंदिर एक समुदाय के रूप में यहूदियों की इज़्ज़त का सवाल रहा। यही गरिमा और पहचान पर्व हनुक्का की मोमबत्तियों में दर्शायी जा सकती हैं। आशा और कोशिश यह हो कि हनुक्का की मोमबत्तियों की रौशनी से इंसान के समूचे समाज में उजाला मिलता रहे।
यहूदी समुदाय की बाइबिल को ‘तोरा’ कहते हैं। इस तोरा में यहूदियों के लिए यहोवा, अदोनाई या ईश्वर के आदेश में सबसे खास है, ‘‘जो अपने लिए खराब या घृणित है, वह दूसरों के प्रति भी नहीं करना’’। यह नीति यहूदियों के लिए स्वर्णिम तो है ही, यह सबके लिए भी स्वर्णिम रहे, यही कायदा है। मेरा पूरा विश्वास है, पर्व हनुक्का की मोमबत्तियाँ सारी दुनिया के लिए इस स्वर्णिम नीति पर रौशनी फेरेंगी।
‘पर्व हनुक्का 2021’ के पुनीत मौके पर भारत के और दुनिया भर के यहूदियों के साथ मिलकर समूची समाज के लोगों को यह संकल्प किया जाना चाहिए कि हनुक्का की मोमबत्तियों से अपनी-अपनी जि़ंदगी के लिए रौशनी पायेंगे तथा जो अपने लिए जायज नहीं है वह औरों को न देने की शराफत रखेंगे। हनुक्का की मौमबत्तियों की रौशनी हमेशा बनी रहे।
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ
हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से
सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध
हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये
उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
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के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p),
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