नये साल में कुछ नया हो जाय
नया साल 2022 / 01 जनवरी / लेख
नये साल में कुछ नया हो जाय
फादर डॉ.
एम.
डी.
थॉमस
निदेशक, इंस्टिट्यूट
ऑफ
हार्मनि
एण्ड
पीस
स्टडीज़,
नयी
दिल्ली
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01 जनवरी 2022! समूची दुनिया में नया साल शुरू हो रहा है। ज़ाहिर है, यह साल ईसवीं सन् के अनुसार है। वैसे तो, पंचांग चक्रीय होता है और उसे सालाना तौर पर कहीं शुरू होना होता है। यह सालाना शुरूआत साल का पहला दिन है। इसका व्यक्तिगत, सामाजिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक महत्व है। ज़ाहिर है, यह इन्सान के लिए पर्वों का पर्व है।
पुराने समय में अलग-अलग सभ्यताओं में कहीं मार्च, कहीं सितंबर, कहीं दिसंबर माह से साल शुरू होता था। आधुनिक समय में भी विविध देशों व परंपराओं के अलग-अलग पंचांग होते हैं, जैसे यहूदी, इस्लामी, चीनी व हिंदू। ईसवी सन् के कुछ डेढ़ सौ साल पहले से नये साल को 1 जनवरी को माना जाने लगा। जूलियन पंचांग ने इसी मान्यता पर मुहर लगायी थी।
लेकिन, इसके बाद भी मध्यकाल काल तक कई देशों ने 25 मार्च, 25 दिसंबर आदि को नये साल की शुरूआत मानते थे। 16वीं सदी में ग्रेगोरियन पंचांग के अनुसार 1 जनवरी को ही नया साल फिर मानने लगे। यही पंचांग धीरे-धीरे लोकप्रिय होता गया और सार्वभौम हुआ।
इस पंचांग को ईसवी सन् मानने के पीछे कुछ बातें हैं। पुराने रोमी गणतंत्र में जूलियस सीसर द्वारा 46 ईसवीं में लागू किये गये ‘जूलियन पंचांग’ चलता था। जूलियन पंचांग में धरती द्वारा सूरज की परिक्रमा करने के ‘ट्रोपिकल यियर’ बराबर दर्शाया नहीं गया था। इसलिए जूलियन पंचांग को मुख्य आधार मानते हुए भी काल गणना की शुद्धता को सामने रख कर विशेषज्ञों द्वारा उसमें कुछ फेर-बदल किया गया था।
साथ ही, 525 ईसवीं में डायनीशस एग्सीयूस नामक यूरोपीय ईसाई साधु ने ईसा के जन्म को आधार मानकर ‘ईसा पूर्व और ईसा पश्चात्’ की समय-गणना का प्रस्ताव लाया। पोप ग्रेगरी 13 ने 1582 ईसवीं में ‘ग्रेगोरियन पंचांग’ को घोषणा कर इसे कैथॅलिक ईसाई देशों में लागू किया।
वैसे तो, अलग-अलग देशों व समुदायों में अपना-अपना पंचांग है और अलग-अलग महीनों व दिनों में नया साल मनाने की परंपरा है, जैसे यदूदी, इस्लामी, चीनी, भारतीय, आदि। भारत के भीतर भी कई पंचांगों की छोटी-बड़ी परंपराएँ हैं।
फिर भी, लेन-देन की सुविधा को सामने रखते हुए ज्यादातर देशों द्वारा ईसवीं सन् को अपनाये जाने लगा। धीरे-धीरे ईसवी सन् दुनिया का सबसे सार्वभौम और सार्वजनिक पचांग के रूप में उभरा। ईसा जयंती से जुड़े होने से ईसाई परंपरा में 1 जनवरी को छुट्टी रखने की रिवाज़ भी होती है।
जहाँ तक पंचांग के पहले महीने का सवाल है, रोमी देवता ‘जानुस’ शुरूआत और अंत के देवता के रूप में मशहूर था और जानुस से ‘जनवरी’ महीना बना। जूलियन और रोमी पंचांग के अनुसार ईसवीं सन् कुछ डेढ़ सौ साल पहले ही से 1 जनवरी को साल का पहला दिन माना जाने लगा था। यही आगे चलकर रूढ़ हो गया।
यह भी माना जाता है कि जानुस के दो चेहरे थे, एक पीछे की ओर और एक आगे की ओर। इसे बुराइयों से मुँह फेरने और अच्छाइयों की ओर मुँह मोड़ने का प्रतीक माना जाता था। इस प्रकार, पुराने साल के आखिरी दिन से मुँह फेर कर नये साल के पहले दिन की ओर मूह मोड़ना होगा, यही काल का कायदा है।
नये साल की शुरूआत को ‘शुभ और समृद्धि’ का प्रतीक मानने की परंपरा कई देश व समुदायों में होती है। नये साल में सबसे पहले जो होता है, उसे साल भर होनेवाले घटनाक्रम की ओर इशारा मानना कई परंपराओं में आम है। इस रूप में, पहला कदम, पहला काम, पहला अतिथि, पहला सफर, पहली दोस्ती, पहली खरीददारी, आदि की ओर ध्यान दिया जाता है।
इतना ही नहीं, परिवार के बड़े और बुजुर्गों को सम्मान देना और उनका आशीर्वाद लेना भी इस दिन शुभ माना जाता है। धार्मिक गतिविधियों में भाग लेना, कुछ खास खाना खाना, खेलकूद में शरीक होना, नये साल का केइक साझा करना, आदि भी नये साल को मनाने के कुछ सामाजिक रस्में हैं।
ओशियानिया में सबसे पहले नया साल मनाया जाता है। भारतीय समय के अनुसार 31 दिसंबर शाम 3 बजकर 30 मिनट पर वहाँ 1 जनवरी शुरू ओता है। अमेरिका के पास स्थित देश हाउलैण्ड और बैकर आइलैण्ड्स में नया साल सबसे आखीरी में मनाया जाता है। साथ ही, पूर्वी देशों में पहले और पश्चिमी देशों में आगे-पीछे के तौर पर नया साल मनाया जाना कुदरत का इंतज़ाम है।
जूलियन पंचांग की अंदरूनी रचना इस प्रकार है। कुछ 2000 ईसा पूर्व से चल रही रोमी पंचांग में सिर्फ दस महीने होते थे और नया साल मार्च से शुरू होता था। महीनों के नाम रोमी देवताओं, शासकों, पर्व व अंकों से लिये गये हैं। माह सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर का नाम रोमी भाषा लातीनी के अंक 7, 8, 9 और 10 से आता है।
इसके अलावा, रोमी शासक क्विंतीलिस और सेक्तीलिस से अंक 5 व 6 के रूप में जुलाई व अगस्त बने। मारतीयुस, अप्रीलिस, माइयूस व जूनियूस से मार्च, अप्रेल, मई व जून बने। बाद में जानूस से जनवरी और फेब्रुउम से फरवरी बनाकर 12 महीनों का जूलियन पंचांग बनाया गया था।
तकनीकी जानकारियों से आगे बढक़र नये साल के भीतरी भाव को उकेरना भी दरकार है। सवाल यह उठ सकता है कि आखिर नये और पुराने साल के दिनों में फर्क ही क्या है? फर्क सिर्फ यह है मन में ‘कुछ नये का भाव’ उठता है, जो कि जि़ंदगी के लिए बेशकीमती है। असल में, ‘नयेपन का भाव’ इन्सानी जि़ंदगी की जान और शान है।
नये के भाव से पुरानी दुश्मनियाँ व आदतें छूट जायें और नये नज़रिये के धारण से जीने की जोश बढे। इतना ही नहीं, नयी सोच, नये फैसले, नये काम, नयी दोस्ती, नयी दिशा, आदि से जि़ंदगी कुछ तरो-ताज़ा हो जाये और ज्यादा सार्थक बन जाये, यही नये साल मनाने का फा
जैसा कि 31 दिसंबर को 2021 को अलविदा कहकर नये साल 2022 का स्वागत किया जाता है, 2021 में जो कुछ बुरा रहा है उसे पीछे छोड़ कर जो कुछ अच्छा रहा है उसे साथ लिये चलते जाना होगा। ‘नया साल 2022’ के पुनीत मौके पर ऐसी कोशिश होनी चाहिए।
यह भी संकल्प कर हो कि नये साल में अपने भीतर नयेपन का भाव जगाकर सार्थक जि़ंदगी जीने की जोश व शान बढ़ायी जाय तथा सांप्रदायिक सदभाव, राष्ट्रीय समरसता, सामाजिक तालमेल व कायनात की एकता को बनाये रखा जाय। भारत के और सारे समाज के नागरिक साथियों को लेखक की तरफ से नया साल 2022 की ढेर सारी बधाइयाँ व मंगल कामनाएँ!
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
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