श्री कृष्ण से निष्काम कर्म साधना सीखें

जन्माष्टमी 2021 / 30 अगस्त / लेख

श्री कृष्ण से निष्काम कर्म साधना सीखें

फादर डॉ. एम. डी. थॉमस 

निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली

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30 अगस्त को ‘जन्माष्टमी’ का पर्व मनाया जा रहा है। जन्माष्टमी को ‘कृष्णाष्टमी’ या ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ भी कहा जाता है। यह पर्व कुल मिलाकर पूरे भारत में और कृष्णभक्त जिन-जिन देशों में रहते हैं उन-उन देशों में भी मनाया जाता है। हिंदू समुदाय के सबसे बड़े पर्वों में इसकी गिनती है।

श्रीकृष्ण भाद्रप्रद या श्रावण मास के कृष्ण पक्ष के आठवाँ दिन, याने ईसवीं सन् के अगस्त-सितंबर में, पैदा हुए थे। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। कृष्ण हिंदू अवतारों में आठवाँ अवतार हैं। कृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में मथुरा में पैदा हुए। गोकुल के यशोदा और नंद ने उन्हें पाला और पोसा भी।

कृष्ण की पैदाईश को लेकर एक कहानी मशहूर है। मथुरा का राजा कंस देवकी का भाई था और वह बहुत क्रूर किस्म का आदमी था। उसने अपनी बहन देवकी के सात बच्चों की बेरहम हत्या की थी। अब एकाएक आकाशवाणी हुई कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा कंस की हत्या होगी। तब जाकर कंस ने देवकी और पति वासुदेव को काल-कोठारी में बंद किया।

आगे चलकर, जब कृष्ण का जन्म हुआ, विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि कृष्ण को गोकुल के यशोदा और नंद के पास पहुँचाया जाय। सो तो हुआ। तब जाकर कृष्ण गोकुल के वृंदावन में यशोदा व नंद की देखरेख में कंस से सुरक्षित रहा।

मान्यता है कि कृष्ण का जन्म रात को 12 बजे हुआ था। तब जाकर सक्षम कृष्णभक्त जन्माष्टमी के दिन रात्रि जागरण कर 12 बजे तक व्रत रखते हैं। मंदिरों में झाँकियाँ सजायी जाती हैं, घर पर या मंदिरों में भजन-कीर्तन के साथ-साथ पूजा-अर्चना होती है, आदि जन्माष्टमी के बुनियादी रस्में हैं।

बाल कृष्ण को झूला झुलाया जाता है, रासलीला और नृत्य-नाटिका का आयोजन, भागवत पुराण और भगवत गीता का पाठ, बैल गाड़ी पर जुलूस, पतंग उड़ाना, आदि जन्माष्टमी मनाने की कुछ विधियाँ हैं। जन्माष्टमी का सबसे ज्यादा धूम मथुरा और वृंदावन में होता है।  

जन्माष्टमी समारोह का दो सबसे खास आयोजन दही-हांडी की प्रतियोगिता और रास लीला का प्रदर्शन हैं। दही-हांडी का आयोजन दूसरे दिन होता है। छाछ-दही से भरी मटकी आसमान में लटकाया जाता है। बाल-गोविंदाओं द्वारा मटकी फोडऩे की साझी कोशिश होती है। जो जीत जाता है, उसे इनाम दिया जाता है। क्या बच्चे क्या बड़े, सब इस खेल से खुशियाँ बटोर लेते हैं।

दूसरा सबसे बड़ा आयोजन रासलीला या कृष्णलीला है, जिसमें ब्रज के कान्हा के नटखट रूप को उभारना अहम् है। माखन चोरी के नज़ारे से बाल्यकाल की शरारतें पेश कर बच्चों की नादानी पर रौशनी डाली जाती है। युवा काल के राधा और गोपियों के साथ के प्रेम-प्रसंगों की अठखेलियों के ज़रिये आत्मा-परमात्मा या इन्सान और ईश्वर के बीच के प्रेम को प्रतीक के रूप में और सरस ढंग से पेश किया जाता है। 

कृष्णभक्ति के संदर्भ में दो बातें ध्यान देने लायक हैं। पहला है, 15वीं सदी में बंगाल के चैतन्य महाप्रभु ने नृत्य और संगीत के द्वारा कृष्ण भक्ति में एक ‘नयी चेतना’ पैदा की। यही चेतना आगे चलकर ‘इस्कोन’ या ‘इंटरनैशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कोन्शसनस’ के रूप में एक अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन बना हुआ है। इसकी शाखाओं द्वारा उन देशों के लोगों को कृष्णभक्ति की ओर आकर्षित करने का काम बड़े पैमाने पर होता रहा भी है।  

दूसरा है, भक्ति-चेतना के इस आंदोलन ने असम के शंकरदेव से मिलकर असम के नामघरों में एक नयी सामुदायिक चेतना पैदा की। साथ ही, इस आदोलन ने जनजातीय प्रांत मणिपूर के कुछ साठ-सत्तर फीसदी लोगों को अपने धार्मिक आगोश में बाँधकर कृष्णभक्ति से भरे-पूरे ‘मणिपुरी’ शास्त्रीय नृत्य का रूप दिया गया, यह भी ध्यान देने लायक बात है।

कृष्ण की चर्चा करते समय एक मज़ेदार बात का उल्लेख करना, मैं समझता हूँ, सर्व धर्म भाव से ज़रूरी है। कृष्ण और क्राइस्ट के बीच कुछ समानताएँ दिखाई देती हैं। पहला है, ‘कृष्ण’ व ‘क्राइस्ट’ शब्दों के उच्चारण में शब्दांश की कुछ समानता है।

दूसरा है, ‘कृष्ण’ और ‘क्राइस्ट’ दोनों की पैदाईश 12 बजे रात को हुई थी, यह मान्यता है। तीसरा है, ‘बाल कृष्ण’ और ‘बाल ईसा’ पर दोनों परंपराओं में काफी ज़ोर दिया जाता है। चौथा है, ‘कृष्ण’ और ‘क्राइस्ट’ दोनों का कत्ल करने पर तुले ‘कंस’ और ‘हेरोद’ के नाम पर शैतानी ताकत का उल्लेख मिलता है। पाँचवाँ है, ‘भगवत गीता’ और ‘नया विधान’ को ईश्वरीय और नैतिक शिक्षाओं के अपने-अपने ढंग के खज़ाना कहना जायज लगता है। 

इतनी समानताओं के रहते हुए भी अलग-अलग समय की इन दो विशिष्ट परंपराओं पर कुछ भी आधिकारिक रूप से कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन, कृष्णभक्त और क्राइस्टभक्त समुदायों के आपस में सद्भाव, समझ, मैत्री और सहकारिता बढ़ाने के लिए इतनी समानता तो कुछ खास प्रेरणा की वजह हो, यह दरकार है।

कृष्ण की शिक्षा में ‘निष्काम कर्म साधना’ बहुत ही ज़बर्दस्त है, जो कि भगवत गीता का अहम् भाव है। कृष्ण ने अर्जुन को नसीहत दी कि अपने-पराये की मोहमाया को लेकर इन्सान-इन्सान में फर्क नहीं करते हुए जीवन में हर एक को अपना कर्म करना चाहिए। स्वार्थ ज़रूरी होकर भी स्वार्थ-भाव से किये जाने वाले काम का दायरा सीमित होता है।

इसलिए, इन्सान को दूसरे की भलाई, परिवार की भलाई, समुदाय की भलाई, देश की भलाई और समाज की भलाई को सामने रखकर तथा ईश्वरीय नज़रिये और ताकत से ऊर्जा पाकर निष्काम भाव से अपने-अपने कर्म को निभाना चाहिए। सफल, सार्थक और संपूर्ण जि़ंदगी की मंजिल, बस, इसी राह में हासिल होगी। जन्माष्टमी की बधाइयाँ और मंगल कामनाएँ निष्काम कर्म की साधना में प्रवृत्त करें।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

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