काम से ज़िंदगी और ईश्वर को एक-साथ साधना होगा

 

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस / 1 मई 2021

काम से ज़िंदगी और ईश्वर को एक-साथ साधना होगा

फादर डॉ. एम. डी. थॉमस

निदेशक, इन्स्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली

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1 मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक या श्रम दिवस’ भी कहा जाता है। इस दिन को ‘मई दिवस’ कहने की रिवाज़ भी आम है। ‘मज़दूरों को अपने अधिकार दिलाना और मज़दूर संगठनों को मज़बूत करना’ इस दिवस का मूल उद्देश्य रहा। आज की तारीख में दुनिया के कुछ 80 से ज्यादा देशों में यह दिन मनाया जाता है।

अगर इतिहास के झरोखे से देखा जाय तो मज़दूरों के अधिकारों के लिए जो लोग लड़कर​ शहीद हुए थे, उन्हें याद करना भी इस दिवस का एक खास मकसद रहा है। इस दिन को ‘शांति व साम्यवाद के लिए मज़दूरों के संघर्ष और समारोह’ के रूप में याद किया जाये, यही जायज है।

1886 में शिकागो में अमेरिका के मज़दूर संगठनों ने ‘काम का समय आठ घंटे’ से ज्यादा रखने के खिलाफ हड़ताल की थी। ‘इस माँग को जीतना और इस जीत को मनाना’ इस दिवस के मूल में है। ‘अमेरिकन फेडेरेशन ऑफ लेयबर’ द्वारा 1 मई को चलायी गयी मुहिम 4 मई को ‘हेयर मार्कट अफेयर’ में कुछ जानों की शहादत के रूप में चरम पर आयी।

आगे चलकर यह दिन दुनिया भर के मज़दूरों की भलाई में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में उभरा है, इसके लिए उस समय के ‘साम्यवादी, सामाजिक और लोकतांत्रिक दलों व मज़दूर संगठनों’ का सलाम किया जाना चाहिए। लगता है, ‘मज़दूर दिवस’ ही दुनिया का सबसे पुराना ‘अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ है और उस रूप में यह जायज भी है।   

‘अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस’ भारत में पहली बार 1923 में मद्रास में ‘हिंदुस्तान किसान पार्टी’ द्वारा मनाया गया था। ‘किसान मज़दूर संघ’ के नेता ‘कॉमरेड सिंगरावेलू चेट्यार’ ने मद्रास के उच्च अदालत के सामने इस दिन को छुट्टी के रूप में मंजूर करने की गुज़ारिश की थी। इसलिए इसे ‘मद्रास दिवस’ भी कहा जाता था।

तब से लेकर यह दिन भारत के ‘मज़दूरों की समस्याओं की ओर जागरूकता’ फैलाने के लिए एक परंपरा बनकर उभरी। फिर भी, भारत में ‘मज़दूर दिवस’ महज ‘राज्य स्तर की छुट्टी’ होती है, देश के स्तर की नहीं। विविध राज्यों में अपने-अपने सूबे की भाषा में इस दिन के अलग-अलग नाम भी होते हैं।  

कुछ 125 साल के इतिहास में करीब-करीब सभी देशों में, संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर भी, बहुत ‘श्रम कानून’ बने हैं। कुछ 100 साल के भीतर भारत में भी राज्यों व देश के स्तर पर श्रमिकों के सिलसिले में बहुत नियम बनाये गये हैं। मनमानी, शोषण, आदि हालातों से एक दूसरे को बचाते हुए काम करने वालों, काम करवाने वालों और सरकार के बीच तालमेल को तय करना इन श्रम कानूनों का मसकद है।

साथ ही, कामगारों का न्यूनतम वेतन, भविष्य निधि या कल्याण निधि, समाजिक सुरक्षा, दुर्घटनाएँ, प्रसूति, बीमारी, छुट्टियाँ, बोनस, आदि तमाम मसलों पर नियम बने हुए हैं। काम करवाने वालों और काम करने वालों के दर्म्यान कर्तव्यों व अधिकारों का संतुलन बनाये रखते हुए श्रमिकों और कारखानों की दशा और दिशा दुरुस्त रखने में इन कानूनों की सार्थकता है। 

ज़ाहिर-सी बात है कि मज़दूर या कामगारों के बगैर इन्सान की जि़ंदगी क्या, यह दुनिया भी, कतई नहीं चल सकती। घर, संस्था, कारखाना, व्यवसाय, देश, समाज, आदि को खड़ा करने से लेकर उन्हें सुचारू रूप से चलाने में भी काम और मेहनत का ही करिश्मा झलकता है। यह दिन इन हकीकतों को भी ज़ाहिर करता है।

चाहे खेती करने व मकान, दुकान, पुल, सड़क​, आदि बनाने में हो या तालाब, कुँआ, नहर, झील, आदि की खुदाई करने में, मेहनतकशों व मज़दूरों की भूमिका अहम् है। रिक्शा चालक, सफाईकर्मी, बढ़ई, लोहार, सुनार, दर्जी, आदि बहुतेरे श्रेणियों के लोग मिलकर समाज को चलाते हैं। वे अपनी अक्ल, इल्म, हुनर और मेहनत को बेचकर अपना-अपना गुज़ारा भी करते हैं।

राष्ट्र-पिता महात्मा गाँधी का कहना था, ‘किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों व किसानों पर निर्भर होती है’। गुरु नानक देव ने भी किसानों, मज़दूरों और कामगारों के हक में जमकर आवाज़ उठाई थी। इसी दिशा में, मज़दूरों की भलाई के मद्देनज़र वामपंथेयों व मज़दूर नेताओं द्वारा केरल में खास और भारत में आम स्तर पर किया गया योगदान काफी सराहनीय भी रहा है। साफ है, मज़दूरों की कड़ी मेहनत का सम्मान करना हर इन्सान का फर्ज है।

मज़दूरों व कर्मचारियों के साथ जाति, धर्म, लिंग, भाषा, विकलांगता, आदि को लेकर किसी भी प्रकार का फर्क नहीं करते हुए हर काम का सम्मान किया जाना चाहिए। काम कई प्रकार के होते हुए भी, काम ‘काम’ है और वह इन छोटी-छोटी बातों से ऊपर होकर सार्वभौम और सार्वजनिक है। इसलिए काम को लेकर ऊँच-नीच का भाव रखना महा जुर्म है, जिससे कदापि बचे रहना चाहिए।

असल में, काम की शुरूआत रचनाकार से है। उसने इस कायनात की रचना करते हुए काम किया था। जि़ंदगी को सुचारू रूप से चलाने के लिए हर इंसान को काम करना होता है। ‘वह जो भी करता है, अच्छा ही करता है’। इंसान के काम के लिए, बस, यही परम ईश्वरीय आदर्श है। हाँ, काम ही  ज़िंदगी है। काम की सबसे छोटी परिभाषा यही है। काम को करते हुए ‘अच्छा लगे’, यही काम की पूर्णता है। इसलिए यूनानी दार्शनिक अरस्तू कहते हैं, ‘काम में खुशी उसमें पूर्णता डालती है’।

इतना ही नहीं, काम, हकीकत में, खुदा की उपासना है। ‘उपासना’ का मतलब ‘करीब रहना’ है। काम करते हुए इंसान खुदा के नज़दीक रहता है, रहना भी चाहिए। काम के ज़रिये ही ईश्वर को साधा जाता है। काम की ऐसी ‘साधना’ से ही ज़िंदगी पग-पग आगे बढ़ती भी है। इसलिए काम को, हाँ हर काम को, खुदा के लायक ‘इज़्ज़त’ दी जानी चाहिए। जो भी इससे कम हो, वह काम और खुदा की एक साथ बेइज़्ज़ती है।

इसलिए काम को सही मायने में ‘निष्काम कर्म’ होना चाहिए। निष्काम कर्म को मेहनताने से परहेज हो, ऐसा तो नहीं लगता। लेकिन, कामगार काम से और उसके फल से चिपक न जाये, यह निष्काम काम के लिए दरकार है। काम से जीवन के मालिक से नाता जुड़े, उसे अच्छा लगे और उसकी ज़िंदगी यों सार्थक हो जाये, यही निष्काम कर्म है।

हमारे भारत देश को ‘श्रम और श्रमिक का कदर करने की कला’ सीखना अब बहुत बाकी है। मिट्टी के साथ कड़ी मेहनत करने वाले ‘किसानों की मौज़ूदा दर्दनाक कहानी’ इसके लिए खुल्लम खुल्ला सबूत है। ज़मीनी स्तर पर हर प्रकार से मेहनत करने वाले मज़दूरों के साथ कोरोना वायरस काल में जो हुआ और हो रहा है, वह भी भारत की ‘धूमिल तस्वीर’ पेश करने वाली है। ‘हम लोग’ और ‘हमारे भारत’ को काम के कुछ आदर्श संस्कृति की ओर चलना होगा, जी हाँ, बहुत आगे की ओर! 

‘अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस 2021’ के महत्वपूर्ण अवसर पर कामना और कोशिश होनी चाहिए कि ‘मज़दूर, किसान व मेहनतकश’ बहनों और भाइयों को अपने काम के लिए भरपूर ‘इज़्ज़त’ मिले। साथ ही, काम को लेकर फर्क न करते हुए काम करने वाले अपनी ‘ज़िंदगी और ईश्वर की साझी साधना’ के रूप में काम करना सीखे। इतना ही नहीं, हमारा भारत ‘काम की नैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक तहज़ीब’ की ओर ‘विकास और प्रगति’ करे।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

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