जी उठकर ईसा ने अमरता की राह बनायी

 

ईस्टर 2021 / 04 अप्रेल

जी उठकर ईसा ने अमरता की राह बनायी

फादर डॉ. एम. डी. थॉमस

निदेशक, इन्स्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

04 अप्रेल को ईस्टर है, याने ‘पुनरुत्थान पर्व’। यूनानी मूल से इसे ‘पास्का पर्व’ कहा जाता है। ईसाई मान्यता के अनुसार इस दिन ईसा मसीह मरने के बाद तीसरे दिन जी उठे थे। बाइबिल के अनुसार मरने से पहले ईसा ने इस बात की ओर संकेत भी किया था। ईसा जयंती के बाद ईस्टर ही ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा पर्व है। 

ईस्टर अपने आप में कोई अलग घटना हो, ऐसा तो नहीं है। ईसा की ज़िंदगी की आखिरी घड़ियों से जुड़ी हुई तीन घटनाएँ होती हैं, जो कि एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। ‘अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोजन करना और उनके पैर धोना’ पहली घटना है। ‘सलीब पर अपनी जान को पिता परमेश्वर के हाथों सौंपकर मर जाना’ दूसरी घटना है तथा ‘मुर्दों में से जी उठना या ईस्टर’ तीसरी घटना भी। इन तीनों घटनाओं को ईस्टर की तीन कडि़याँ कही जा सकती हैं। 

तीन दिनों में बिखरी हुई इन तीन घटनाओं को पवित्र गुरुवार, पवित्र शुक्रवार और पवित्र रविवार भी कहा जा सकता है। तीनों घटनाएँ मिलकर ईसा की ‘पुण्य तिथि’ के रूप में एक साझी हकीकत साबित होती हैं। या यों कहा जाय, ये तीनो घटनाएँ एक सच्चाई के तीन पहलू हैं। इन तीन दिनों को मिलाकर ‘त्रिदुवुम’ या ‘दिवस-त्रय’ कहते हैं। ये तीन दिन ‘पवित्र सप्ताह’ के भीतर आते हैं।

पवित्र सप्ताह चालीस दिनों की तैयारी के बाद आता है, जो कि ‘लेंट या उपवास काल’ के रूप में जाना जाता है। ‘चालीस दिन’ इसलिए हैं कि अपने सार्वजनिक जीवन शुरू करने से पहले ईसा ने चालीस दिन का उपवास किया था। उपवास काल ‘राख बुधवार’ या ‘राख सोमवार’ से शुरू होता है, जो कि अपने गुनाहों को कबूल करने का सलाना रस्म है।

ईसा की ज़िंदगी की आखिरी घड़ियों में मानसिक रूप से शरीक होना तथा उनकी प्रेरणा और ताकत से अपने जीवन को बेहतर कर खुद को धन्य करना इस काल का कुछ अहम् भाव है। ‘उपवास’ शब्द का अर्थ ‘पास या समीप रहना’ है। इसका मतलब है, ईसाई को इस काल में खास तौर पर अपनी भावना में ईसा के और साथी इन्सानों के पास रहना है।

ईसा या ईश्वर के करीब रहने का मतलब है, ईसा के मूल्यों को अपनाना और ‘ईसा-जैसे बनने’ की कोशिश करना। साथी इन्सानों के करीब रहने का मतलब है, उनके प्रति प्यार-भाव से प्रेरित होकर उनकी मदद करना, खासकर ज़रूरतमंदों की। इन्सान के लिए जो किया जाता है, वह असल में ईसा के लिए किये जाने के बराबर है तथा जो ईसा के लिए किया जाता है, वह ईश्वर के लिए किये जाने के समान भी। ईश्वर और इन्सान में तालमेल बिठाने के लिए, बस, यही ईसा की स्वर्णिम तालीम थी। 

ईस्टर की शुरूआत ‘पवित्र गुरुवार’ से हुई थी। इस दिन दो हिस्से में ईसा की गुरुता का चरम रूप ज़ाहिर हुआ था। अंतिम भोज में आपने रोटी और दाखरस को, याने खाने और पीने को, अपनी याद में एक दूसरे के साथ ‘साझा करने’ की नसीहत दी।

साथ ही, गुरु होकर भी विनम्र भाव से अपने चेलों के पैर धोकर आपने ‘सेवा’ की चरम सीख दी। गुरु होने की ऐसी नज़ीर ईस्टर या जी उठने की सीढ़ी का पहला चरण बनी। साथ-साथ ऐसे गुरु के वार के रूप में ‘गुरुवार’ को एक अनोखी पवित्रता भी मिली।  

ईस्टर का दूसरा चरण ‘पवित्र शुक्रवार’ या ईसा की शहादत का दिन’ है। इस दिन ईसा इन्सानी वर्ग के तमाम गुनाहों की खातिर तपस्या के रूप में सलीब ढोते-ढोते आखिर उसी पर शहीद हुए। आपने अपने गुनहगारों के लिए यह कहकर बिलाशर्त माफ़ी की मिसाल बने, ‘हे पिता, इन्हें माफ़ कर, ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं’।

इसके बाद, आपने अपने मिशन को अंजाम तक पहुँचाते हुए कहा, ‘हे पिता, तेरे हाथों मैं अपनी आत्मा को सौंपता हूँ’। खुदा का शुक्र है कि ईसा ने पिता परमेश्वर में तल्लीन होकर इस शुक्रवार को ऐसा पवित्र बनाया कि वह बाकायदा ईसा की पुण्यतिथि का केंद्र है।  

ईस्टर का अंतिम चरण और उसकी चरम सीमा ‘पवित्र रविवार’ है। इस दिन, जैसा कि उन्हें भान थी, मौत को मात देकर ईसा मुर्दों में से जी उठे। जिस कब्र में ईसा दफनाये गये थे, वह खाली पाये गये। जी उठकर ईसा ने अपने शिष्यों को दर्शन भी दिये। हताश हुए चेलों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। उन्हें अपने गुरु के अलौकिक कद का एहसास हुआ। ये सब जी उठने के कुछ अजीबो-गरीब सबूत रहे।

साथ ही, जी उठना असल में खुदाई करिश्मे की पहचान है। जी उठकर ईसा हमेशा के लिए ईश्वरीय ऊर्जा का जीता-जागता सोता बने रहे। जो रविवार ईसा-रूपी ‘रवि के वार’ के तौर पर पवित्र हुआ, वह ईस्टर रविवार बना। तब से लेकर ‘रविवार’ पवित्र दिन के रूप में करीब-करीब सारी दुनिया में सार्वजनिक छुट्टी का दिन भी बना। 

ईसाई मान्यता है की ‘ईस्टर या ईसा का जी उठना’ सिर्फ ईसा की हकीकत नहीं है। यह हर ईसाई की, हर इन्सान की भी, अमरता की राह बनी है। ईसा का कहना था, ‘मैं ही पुनरुत्थान और जीवन हूँ, जो मुझ में विश्वास करता है, वह मरने पर भी नहीं मरेगा, वह जी उठेगा’।

‘जी उठना’ सिर्फ मौत के बाद की घटना नहीं है। वह पैदाईश से लेकर मौत तक और उसके बाद तक भी चलनेवाली एक अटूट प्रक्रिया है, हाँ, जीवन-यात्रा है। बस, आस्था की ऊर्जा और विश्वास की ताकत बनी रहें, यही दरकार है। जी उठना हमेशा के लिए जुग-जुग जीने का महज दूजा नाम है।

लेकिन, जी उठना इतना आसान नहीं है। रोटी-पानी को दूसरों के साथ, खासकर लाचारों के साथ, भरपूर साझा करना होगा। विनम्र होकर औरों के पैर धोना होगा, उनकी सेवा करनी होगी, खास तौर पर अपने से कमतरों की। अपने गुनहगारों को माफ करना होगा, वह भी दिल से, हर बार और बिलाशर्त।

इतना ही नहीं, अपने-अपने सलीब को खुद ढोते हुए ज़िंदगी का सफर तय करना होगा। अपनी जान को खुशी से खुदा के हाथों सौंपते हुए निहाल होकर ज़िंदगी में चलते रहना होगा। अमर होने के लिए ईसा के अमर मूल्यों को जी-जान से जीते-जीते चलना होगा। तब जी उठना तय है। जीना, सही मायने में, बस, इसी का नाम है।

ईस्टर या ईसा के पुनरुत्थान पर्व के परम पुनीत मौके पर सभी देशों व समुदायों में फैले ईसाइयों को ऐसा संकल्प करना होगा कि अपने श्रेष्ठ गुरु ईसा के नक्शा-ए-कदम पर नये सिरे से चलेंगे तथा ईसा के अनोखे मूल्यों के बलबूते जीवन में हर पल जी उठते रहेंगे। साथ ही, समूचे समाज के सभी इन्सानों को भी अमरता की राह चलने के लिए ईसा के सार्वजनिक मूल्यों से कुछ-न-कुछ सीख लेनी होगी।

-----------------------------------------------------------------------------------------------------

लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

Comments

Popular posts from this blog

मदर तेरेसा द्वारा कमतरों की सेवा में ईश्वर-साधना

होली के पर्व से जीवन में रंग आये

ईद से समाज में भाईचारे और ज़कात की तहज़ीब बने