भारत का गणतंत्र मज़बूत हो!

 

गणतंत्र दिवस 2021 / 26 जनवरी 2021

भारत का गणतंत्र मज़बूत हो!

फादर डॉ. एम. डी. थॉमस

संस्थापक निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ हारमनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली

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26 जनवरी 2021 को भारत का 72वाँ गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। ज़ाहिर है, यह दिन भारत देश का राष्ट्रीय पर्व है तथा सभी नागरिकों के लिए हर्ष और उल्लास का अवसर है, होना भी चाहिए।

गणतंत्र दिवस का मुख्य समारोह देश की राजधानी नयी दिल्ली के इंडिया गेट और राजपथ पर संपन्न होता है, जिसकी परंपरा 1955 में शुरू हुई थी। भारत की ‘विविधता में एकता’ का परिचय देनेवाला यह अनोखा नज़ारा अपने आप में एक अव्वल समा बाँधने वाली हैं।

सैन्य टुकड़ियों का परेड, विविध राज्यों और विभागों की तरफ से भव्य झाँकियाँ, कुशल कलाओं की प्रस्तुतियाँ, छात्र-छात्राओं के रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम, राजपथ की दोनो तरफ खचाखच भरे हुए नागरिक दर्शक और शासन-प्रशासन के पदाधिकारी, आदि इस समारोह की विविध कड़ियाँ हैं।

इसी तर्ज पर, झंडा वंदन, संस्कृति और कला की प्रस्तुतियाँ देश के सभी राज्य, केंद्र-शासित प्रदेश, जिले और शहर-नगर के केंद्रों में आयोजित होते हैं। इसी क्रम में विद्यालय और महाविद्याल तथा अन्य संस्थाएँ भी इस दिन को मनाते हैं। कहने की ज़रूरत नहीं है कि राष्ट्रीय राजधानी में गणराज्य के प्रमुख राष्ट्रपति, प्रांतों के स्तर पर राज्यपाल तथा अन्य केंद्रों पर वहाँ के प्रमुखों द्वारा परेडों की सलामी ली जाती है। 

इस दिन भारत का संविधान लागू किया गया था। वैसे तो 15 अगस्त 1947 को भारत को राजनीतिक आज़ादी मिली थी। लेकिन 26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने के साथ ही भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना। तभी असल में भारत पूरी तरह से आज़ाद होकर एक राष्ट्र बना है।

ज़ाहिर तौर पर यह तो बड़े गर्व की बात है कि भारत देश का संविधान डॉ. भीम राव अंबेडकर द्वारा बनाया गया था। यह अपने आप में सबूत है कि मौका मिलने पर कोई भी इन्सान पृष्ठभूमि की हदों को लाँघकर बुलंदियों को सहज रूप से हासिल कर सकता है, यहाँ तक कि संविधान बनाने-जैसा बड़ा योगदान भी। असल में, यह बात भारत के लोकतंत्र के भीतर मौजूद असीम संभावनाओं की ओर इशारा करती है।

हमारा देश गणतंत्र और लोकतंत्र दोनो है। इसे प्रजा तंत्र और जनतंत्र भी कहा जा सकता है। दोनों में नीचे से ऊपर तक चयनित नुमाइंदों के ज़रिये प्रजा और जनता की शासन होने का भाव है। शासन-प्रशासन की असली बागडोर नागरिकों के हाथ में रहे, देश की भलाई को लेकर हर समुदाय, तबके और व्यक्ति की अपनी-अपनी आवाज़ बुलंद रहे, देश को चलाने में सभी समुदायों की बराबर हिस्सेदारी रहे, यही गणतंत्र और लोकतंत्र की आत्मा है, होनी भी चाहिए। तभी देश को पूर्ण आज़ादी और स्वराज हासिल होगी। गणतंत्र दिवस उस आदर्श दिन की ओर चलते रहने की प्रेरणा लेने का स्वर्णिम अवसर है।

भारत की ‘विविधता में एकता’ सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हो, ऐसा तो नहीं है। किसी-न-किसी आड़ में देश पर मालिकाना हक जताने की हौड़, दूजे पर तरह-तरह का हमला करने की नीच प्रवृत्ति तथा औरों को डरा-धमकाकर गुलाम बनाकर रखने की कोशिश पर जब तक अंकुश न लगे, तब तक ‘विविधता में एकता’ का नारा आसमान के रंगीन गुब्बारा-जैसा ही रह जायेगा।

भारत के विविध समुदायों के आपस में ऊँच-नीच, बड़ा-छोटा, सही-गलत, अपना-पराया, आदि का फर्क किये बिना साझेदारी और एकता का भाव रहे तथा प्यार-मुहब्बत और अमन-चैन रहे, तभी विविधता में असली एकता झलकेगी। मैं समझता हूँ, गणतंत्र दिवस इस दिशा में अपने गिरेबाँ में झाँकने का वक्त है।

साथ ही, गणतंत्र दिवस समारोह के मौके पर देश की अंद​रूनी सच्चाइयों को लेकर कुछ तीखे सवालों का उठना भी लाजिमी है। कई करोड़ों की तादाद में झोंपड़ पटटी में, पुल के नीचे और सड़क​-गलियारों में रहकर तथा भीख माँगकर गुज़ारा कर देश के हाशिये पर रहने को मज़बूर लोग इन्सान के लायक ज़िंदगी कब जी पायेंगे? देश की मुख्य धारा में आने की किस्मत उन्हें कब मिलेगी?

मज़दूर, किसान, सफाईकर्मी, छोटे-मोटे विक्रेता, आदि की दर्दनाक कहानियों की प्रस्तुतियाँ गणतंत्र दिवस के रंगारंग प्रस्तुतियों में कब जगह पायेगीं? निश्चित है, इन सवालों के सकारात्मक जवाब से ही भारत देश असल में लोकतंत्र और गणतंत्र बन सकेगा।

इतना ही नहीं, रोटी, कपड़ा, मकान, आदि बुनियादी ज़रूरतों के साथ-साथ शिक्षा, चिकित्सा, आमदनी, स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण, आदि से वंचित वर्ग के लिए तरक्की का रास्ता कब और कैसे खुलेगा? दुष्ट और शरारती तत्वों से भारत के नागरिकों को कब निजात मिलेगी? स्वार्थ और झूठ के शिकार होकर बेवकूफ और लाचार के रूप में जि़ंदगी बिताने वाले लोगों को इन्सानियत का हक और इज़्ज़त​ कौन और कब दिलायेगा?

मुझे लगता है, राजनीति, शासन-प्रशासन, धर्म, पढ़े-लिखे, अमीर, आदि तबकों के जि़म्मेदार लोगों को अपनी अंतरात्मा का कसम खाकर इन खरे सवालों का जवाब देना होगा। तभी गणतंत्र दिवस का समारोह पूरा होगा।

अंत में, भारत देश गणतांत्रिक और लोकतांत्रिक देश तब बना था जब संविधान लागू हुआ था। संविधान ही गणतंत्र और लोकतंत्र के साथ-साथ देश की आत्मा, अंतरात्मा और अंत:करण है। संविधान देश के सुशासन और कल्याण का आधार भी है। अगर संविधान के मूल्यों के उजाले में नहीं चलता, देश अंधों की टोली बन जायेगा। संविधान के मूल्यों के सहारे ही देश तरक्की की दिशा तय कर सकता है।

ज़रूरत इस बात की है कि देश के विविध स्तरों पर भिन्न-भिन्न विभागों को सँभालनेवाले पदाधिकारी, सभी नागरिक​ भी, यह संकल्प कर लें कि संविधान की प्रस्तावना में अंकित पुनीत मूल्यों पर अमल करते हुए भारत देश की अखण्डता, एकता और प्रतिष्ठा को बढ़ाने की ओर समर्पित रहेंगे। हमारे भारत के संविधान की जय हो, गणतंत्र की जय हो और लोकतंत्र की जय हो!

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o)सामाजिक माध्यमhttps://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष9810535378 (p).

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