शिव-भाव से देश व समाज शुभ बने
महाशिवरात्रि / 11 मार्च
2021
शिव-भाव से देश
व समाज शुभ बने
फादर डॉ. एम.
डी. थॉमस
निदेशक, इंस्टिट्यूट
ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली
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11 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस रात्रि को लेकर कई मान्यताएँ होती हैं, जैसे शिव ने नृत्य किया था, शिव की पार्वती से शादी हुई थी, शिव ने खुद ज़हर पीकर दुनिया को बरबाद होने से बचाया था, आदि। हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने में शिवरात्रि होती है। इसलिए सालाना शिवरात्रि को ‘महाशिवरात्रि’ कहते हैं।
शिव दर्शन की परंपरा भारत की मुख्य धार्मिक परंपराओं में गिनी जाती है। कहा जाता है कि शिव परंपरा वेद की, वेद के पहले की और वेद के बाहर की कई परंपराओं का मिला-जुला रूप है। शिव की कल्पना की सबसे मज़बूत जड़ें जनजातीय परंपराओं में मिलती हैं। पर्वतीय आवास, पार्वति, आदि बातें इसी हकीकत को साबित करती हैं।
परंपरा के अनुसार शिव ‘कैलाश पर्वत’ पर निवास करता है, जो कि इस समय चीन में है। कैलाश पर्वत वैदिक, जैन, बौद्ध और बोन परंपराओं के लिए पवित्र है। कैलाश को स्वर्ग लोक का फाटक भी माना जाता है। कैलाश पर्वत कई नदियों का उद्गम स्थल भी है, जिन्हें बहुतेरे लोग पवित्र मानते हैं। साफ है, यह तीर्थयात्रा के लिए अहम् जगह है।
साथ ही, शिव का सहभागी या साथी ‘पार्वति’ है, जो कि पर्वत की बेटी और ‘शक्ति’ का प्रतीक है। ‘शिव-शक्ति’ की धारणा आपस में पूरक होने का प्रतीक है। यह ‘नर और मादा’ के साथ-साथ ‘ईश्वर और इन्सान’ के मिले-जुले तत्व का भी रूप है। ‘अर्ध-नारीश्वर’ की धारणा के मुताबिक शिव आधा पुरुष और आधा नारी का संयुक्त रूप है। याने, सृष्टि के इन तत्वों के संयोग से शिव ईश्वरीय ताकत का प्रतीक है, यह मान्यता है।
‘शिव’ शब्द का अर्थ बहुत ही प्रेरणादायक है। यह शब्द संस्कृत भाषा का है, जिसका अर्थ है ‘शुभ, गुणी, शालीन, सौम्य, परोपकारी, मिलनसार’, आदि। इसका मतलब यह भी है, ‘जिसमें सब कुछ समा रहता है’। शिव वह है जो ‘व्यापक, विस्तृत और प्रसरणशील’ है। शिव वह है जो ‘अनुग्रह का अवतार’ है। शिव वह है, जो ‘निर्मल’ है और ‘जिस पर किसी चीज़ का असर नहीं होता’। कहने की ज़रूरत नहीं है कि शिव अपने आप में एक संपूर्ण धारणा है।
साथ ही, शिव ‘महेश’ है, ‘महादेव’ है और ‘देवों का देव’ है। वह देवताओं के ‘समुच्चय में प्रमुख’ भी है। वह ‘ब्रह्मा, विष्णु, महेश’ रूपी त्रिमूर्ति में एक है। शिव वह तत्व भी है, जिसमें सब कुछ विलीन होता है। वह ‘बुराई का नाश करने वाला’ है। ‘पद्मासन’ पर ध्यान मुद्रा में बैठे हुए वह ‘योग’ और ‘ध्यान’ का प्रतीक भी है।
जहाँ तक शिव के नृत्य का सवाल है, वह ‘स्वर्गिक नृत्य है जो सृष्टि को संपन्न करता’ है। शिव का नृत्य तांडव नृत्य है, जो कि ‘उग्र’ है और पुरुष-भाव लिया हुआ है। उसमें ईश्वरीय ऊर्जा का संचार होता है। वह बुराई को खतम करने और अच्छाई को पैदा करने का मिला-जुला प्रतीक है। नृत्य इन्सान के ईश्वरीय या आध्यात्मिक अहसास और तल्लीनता का प्रतीक भी है।
शिव-भक्ति की परंपरा में ‘शिव लिंग’ की पूजा होती है, जो कि सृष्टि का प्रतीक है। भारत में बारह ‘ज्योतिर्लिंग’ हैं, जहाँ शिव पूजा के महत्वपूर्ण मंदिर होते हैं। उनमें चार जगहों में, याने उज्जैन, प्रयाग, हरिद्वार और नासिक में, बारह सालों में एक बार ‘सिंहस्थ कुभ मेला’ आयोजित होता है, जो कि शायद दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक जमात है। पूजा के बाद वहाँ की क्षिप्रा, गंगा-यमुना, गंगा और गोदावरी नदियों में गुनाहों से छुटकारा पाने के लिए पवित्र स्नान भी किया जाता है।
मान्यताओं, परंपराओं, मिथकों और कर्मकांड की इन बातों से आगे बढ़कर यह सवाल पूछना जायज होगा कि इन्सान की रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए ‘महाशिवरात्रि’ के क्या मायने हैं। शिव-भाव को अपनाकर शिवभक्त को एक दूजे के लिए ‘गुणी, सौम्य और शुभ’ बनना होगा। समुदाय और समुदाय तथा देश व देश के दरम्यान रिश्तों को शालीन और परोपकारी बनाना भी शिव-साधना का फल होना चाहिए।
इतना ही नहीं, इन्सान को देश व दुनिया के सामाजिक जीवन में एक दूसरे के लिए ‘अनुग्रह के अवतार’ के रूप में ईश्वरीय ऊर्जा का ज़रिया खुद बनना होगा। अपने और समाज के भीतर मौज़ूद बुराई का नाश करते हुए अच्छाई को पैदा करने की भी कोशिश सदैव होती रहनी चाहिए। इस प्रकार, शिव की प्रेरणा और ताकत से हमारा देश व समाज बेहतर और ज्यादा जीनेलायक बन सके, बस, मैं समझता हूँ, यही महाशिवरात्रि मनाने की सार्थकता है।
महाशिवरात्रि के पुनीत अवसर पर ऐसा संकल्प हो कि ‘शिव-भाव’ से प्रेरित होकर भक्त और सभी नागरिक ‘शुभ और मंगलकारी’ बने। सामाजिक जीवन नफरत और मार-काट से उबर कर तालमेल से युक्त हो तथा शालीन और सुखद बनें। महाशिवरात्रि की बधाइयाँ और मंगलकामनाएँ भी। ऊँ नम: शिवाय।
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट:
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