अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार महफूज रहें

 

अल्पसंख्यक अधिकार दिवस / 18 दिसंबर 2020

अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार महफूज रहें

फादर डॉ. एम. डी. थॉमस 

निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- 

18 दिसंबर भारत में ‘अल्पसंख्यक अधिकार दिवस’ है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1948 में किये गये ‘सर्व राष्ट्र मानव अधिकार घोषणा पत्र’ इस दिवस का आधार है। साथ ही, संयुक्त राष्ट्र द्वारा सभी देशों के अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए 1992 में किये गये ‘संकल्प पत्र’ रहा है इस दिवस को तय करने की विशेष प्रेरणा।

इसके तहत भारत सरकार ने 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की, जिसकी प्रांतीय इकाइयाँ पूरे देश में बनी हुई हैं। भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना, उनसे जुड़ी हुई शिकायतों का निपटारा करना तथा इस सिलसिले में लोगों में जागरूकता फैलाना इन संस्थाओं का काम है। इसके अलावा, सालाना तौर पर नागरिकों को इस दिशा में चेताना और जगाना अल्पसंख्यक अधिकार दिवस का मकसद है। 

यह तो ज़ाहिर बात है कि अल्पसंख्यक समुदाय वह है जो जाति, प्रजाति, जनजाति, भाषा, धर्म, संस्कृति, आदि को लेकर तादाद में कमतर है तथा जिसकी तादाद ज्यादा है, वह बहुसंख्यक समुदाय है। खैर, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक समुदायों के बीच तालमेल बनाये रखना इन्सानियत के नाते ही नहीं, धर्म और नैतिकता के नज़रिये से भी बेहद ज़रूरी है। इसलिए इस संदर्भ में चंद बातें गौर करने लायक हैं।

पहली बात है, अपलसंख्यक और बहुसंख्यक समुदायों के बीच फर्क सिर्फ संख्या का है। संख्या एक बड़ी बात ज़रूर​ है, इसे मानते हुए भी संख्या को सब कुछ या बहुत ज्यादा समझना बेमानी होगी। क्योंकि अधिकार व्यक्ति और समुदाय का होता है, तादाद का नहीं। इसलिए अधिकार को तादाद से बढ़कर​ इज़्ज़त देना सही होगा।

दूसरी बात है, अलपसंख्यक और बहुसंख्यक की बात देश और काल के अनुसार बदलती है। कोई समुदाय किसी देश या प्रांत में अल्पसंख्यक भले ही हो, वह दुसरे देश या प्रांत में बहुसंख्यक हो सकते हैं। मसलन, ईसाई और इस्लामी समुदाय भारत में अल्प​संख्यक होकर भी भारत के बाहर बहुतेरे देशों में बहुसंख्यक हैं। इसलिए, सभी समुदायों को एक निगाह से देखना सच्चाई और शालीनता के ज्यादा करीब होगा।

तीसरी बात है, शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, विकास, आदि के साथ-साथ समाज के लिए योगदान के मद्देनज़र कई अल्पसंख्यक समुदायों की उपलब्धियाँ और योगदान अपनी तादाद से कहीं काफी ज्यादा सराहनीय हैं। इसलिए गुणवत्ता और देश की बेहतरी के लिए योगदान की दृष्टि से समुदायों को समझना बेहतर होगा।

चौथी बात है, जो समुदाय तादाद में बड़ा है, वह छोटे समुदायों के लिए असल में बड़े भाई के समान है, जैसे परिवार में बड़े भाई की भूमिका होती है। इस नज़रिये से, छोटे समुदायों की देख-रेख, सुरक्षा और मदद करने में बड़े समुदाय का बड़प्पन निहित है।

इतना ही नहीं, आखिर जब दो व्यक्ति आपस में मिलते हैं, तब इन्सान-इन्सान की मुलाकात होती है, किसी बड़े-छोटे की पेशकश नहीं। इसलिए अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक या अल्पमत और बहुमत को लेकर समुदायों में बड़ा-छोटा, ऊँच-नीच, अपना-पराया, पहला-दूसरा, आदि का भाव रखना तथा आपस में तू-तू-मैं-मैं करना, मुझे लगता है, बिलकुल ही बचकानी बात होगी।

‘सर्व राष्ट्र मानव अधिकार घोषणा पत्र’ और ‘सर्व राष्ट्र अल्पसंख्यक संकल्प पत्र’ के अनुसार किसी भी समुदाय के अधिकार का हनन करना कानूनी तौर पर और नैतिक तौर पर अपराध है। साथ ही, भारत के महान संविधान में मौज़ूद ‘पंथनिरपेक्षता’ की बात भारत के तमाम नागरिकों के लिए नैतिक और सांस्कृतिक आदर्श है।

हमारे भारत देश की कोई एक जाति, प्रजाति, जनजाति, भाषा, धर्म, विचारधारा, संस्कृति, आदि नहीं है। भारत, सही मायने में, एक बहु-भाषीय, बहु-जातीय, बहु-धार्मिक, बहु-सांस्कृतिक और बहु-सामुदायिक देश है। ‘विविधता में एकता’ भारत की असली पहचान है, हमेशा होना भी चाहिए।

इसलिए भारत के नागरिक 80 और 20 फीसदी के फालतू पसोपेश​ में नहीं पड़ते हुए सभी समुदायों को भारत का अपना समझें, उनसे भीतर से जुड़कर​ भारत की ‘साझी संस्कृति’ को मज़बूत करें, यही जायज है। आखिर, जि़ंदगी चार दिनों की चाँदनी है। सबको किसी दिन इस देश और दुनिया को छोड़कर​ जाना होगा। अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनो इस दुनिया में चंद दिनों के मुसाफिर हैं।

इसलिए मिल-जुलकर रहें, एक दूसरे से दोस्ती करें, एक दूसरे की मदद करें, एक दूसरे को समृद्ध करें, खुश रहें, तथा देश व इन्सानियत की इज़्ज़त बढ़ायें, यही समझदारी होगी। भारत की धार्मिक, नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत की सार्थकता, बस, यही होगी, भारत के भविष्य की उज्ज्वलता भी।  

अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के अवसर पर भारत के सभी साथी नागरिकों को यह संकल्प कर लेना होगा कि वे विविध समुदाय के होकर भी ‘इंद्रधनुष’ के समान एक दूसरे से मिलकर रहें। साथ ही, वे एक बेहतर और बेहतरीन भारत के निर्माण में एकजुट रहें। जय सर्व समुदय, जय भारत।

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).

 

Comments

Popular posts from this blog

Greed for Wealth leads to Corruption

Religion is like Cholesterol!

Good Family Makes a Good Society