महात्मा गाँधी की प्रेरणा से देश बेहतर बने
शहीद दिवस / 30 जनवरी 2021
महात्मा गाँधी
की प्रेरणा से देश बेहतर बने
फादर डॉ. एम.
डी. थॉमस
संस्थापक निदेशक,
इंस्टिट्यूट ऑफ हारमनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली
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जैसा कि हमें मालूम है, 30 जनवरी को भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की शहादत हुई थी। यह दिन भारत में ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यदि इतिहास के झरोखे से देखा जाय तो 1948 में मोहनदास करमचंद गाँधी की हत्या नाथूराम गोडसे द्वारा हुई थी, जो कि हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य तथा राजनीतिक कार्यकर्ता थे।
साफ है, बेचारा आदमी महात्मा के मिज़ाज़ को हज़म नहीं कर पाये। आखिर, महात्मा तो महात्मा है। उन्हें समझने के लिए कुछ बड़ा दिमाग ज़रूर चाहिए। खैर, यही इस दिन की सार्थकता है। इस दिन बापू जी के साथ-साथ देश के लिए मर मिटे भारत के अन्य शहीदों को भी याद किया जाता है।
रस्म के तौर पर इस दिन देश के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, रक्षा मंत्री और तीन सेवा प्रमुखों द्वारा समाधि स्थल पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, वह भी बहुरंगी फूलमाला से। साथ ही, सम्मान के तौर पर बिगुल फूँका जाता, उलटे हाथ पेश किये जाते तथा सर्व धर्म प्रार्थना और भजन का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। इसके अलावा, सुबह 11 बजे पूरे देश में महात्मा जी के आदर में दो मिनट का मौन भी रखा जाता है।
‘हे राम!’, ये शब्द गाँधीजी के समाधि पर लिखे हुए मिलते हैं। कहा जाता है कि ये उनके अंतिम शब्द थे। माना भी जाय कि यह सही है, गौर करने की बात यह है कि उनका यह राम किसी खास परंपरा, समूह, दल या संकीर्ण धारा से नाता रखता हो, ऐसा तो नहीं लगता। बल्कि यह सीधे परमात्मा की ओर इशारा करता है, जो कि सबके भीतर मौजूद जान का मालिक है।
क्योंकि वे ‘सत्य’ को ही ईश्वर मानते थे और ‘सर्व धर्म समभाव’ पर विश्वास करते थे। वे सर्व धर्म भजन की परंपरा में रमे हुए भी थे। वे ईश्वर के नाम पर हो रही खेमेबाजी पसंद नहीं करते थे, क्योंकि ईश्वर तो सबको जोड़ने वाला तत्व है। बस, ऐसा अंदाज़ ही महान आत्मा की पहचान है। बस, ज़रूरत इस बात की है कि मज़हब को लेकर लोगों के बीच बढ़ रहे फासले को कम कर आपसी सद्भाव व तालमेल बढ़ाने में राष्ट्रपिता से प्रेरणा ली जाय।
मोहनदास जी पेशे से वकील थे। आपने यूनिवेर्सिटी कोलेज लंदन से बैरिस्टर की उपाधि ली थी। इसके बाद, साउथ आफ्रिका में कुछ 20 साल रहकर अपने प्रवासी भारतीयों के नागरिक अधिकारों की वकालत की। वहीं रहकर आपने अपने राजनीतिक और नैतिक जीवन-दृष्टि को रूप भी दिया।
भारत आकर आपने मुख्य रूप से अग्रेजों की हुकूमत से भारत को आज़ादी दिलाने की ज़बर्दस्त और बेमिसाल मुहिम चलायी। साथ ही, अपने हाथ से ही चरखे पर सूत कातकर अपनी धोती और शाल तैयार करते हुए सादगी की जि़ंदगी जीते थे। साथ-साथ, आप महिला, मज़दूर, किसान, शहरी श्रमिक, आदि के जायज अधिकारों के लिए जमकर आवाज़ भी उठाया करते थे।
आज़ादी के आंदोलन में गाँधीजी का हथियार ‘अहिंसा और सत्य’ रहा। ज़ाहिर तौर पर यह एक बेहद नया रवैया रहा, बहुत सराहनीय भी। ‘सत्याग्रह’ विदेशी शासकों की आज्ञाओं का शांतिपूर्ण विरोध और उल्लंघन करने का तरीका था। आप 20 दिन तक भी व्रत किया करते थे तथा जगह-जगह आम सभाओं में सभी समुदायों के नागरिकों को साथ लिया करते थे।
इस प्रकार, गाँधी जी ने ‘अंग्रेज़ो, भारत छोड़ो’ ऐसे आंदोलन को लेकर डटकर लगे रहे, और अंजाम तक पहुँचाया भी। यदि गाँधीजी न होते भारत को आज़ादी मिलती या नहीं या मिलती भी है तो कब मिलती और भारत की अब क्या स्थिति होती, इस पर कुछ भी कहना मुश्किल है। ‘आज़ाद भारत’ के साथ-साथ भारत देश का बहुत बहुत कुछ, बस, गाँधीजी का ही अनूठा योगदान है। बेशक, तब जाकर वे ‘महात्मा’ और ‘राष्ट्रपिता’ दोनो बने हुए हैं, वह भी हमेशा के लिए।
इसके अलावा, छुआछूत के शिकार हुए अतिशूद्रों की पीड़ा से परेशान होकर गाँधीजी यहाँ तक कह उठे, ‘‘यदि मैं फिर पैदा होता तो एक अछूत बनकर पैदा होना चाहता’। अतिशूद्रों को ‘हरिजन’, या ईश्वर के लोग, कहना आपकी एक अनोखी सोच थी, इसलिए कि उन्हें इन्सान के लायक इज्ज़त मिले। ज़ाहिर-सी बात है कि वे ईसा द्वारा ‘पर्वत पर दिये गये प्रवचन’ में मौज़ूद ईश्वरीय मूल्यों से, खास तौर पर लाचारों के वास्ते, बहुत प्रभावित हुए थे। लगता है कि ‘हरिजन’ की बात उस प्रेरणा का फल है।
खैर, भारत के खास संदर्भ में ऐसी सोच और कदम के लिए गाँधीजी वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं। इस दिशा में, देश के हाशिये पर रहने के लिए मज़बूर करोड़ों-करोड़ों बदकिस्मत इन्सानों की दुर्दशा को दूर किया जाना बेहद ज़रूरी है। तभी महात्मा के बहुत ही अधूरे सपने को साकार किया जा सकता है। तभी, मुझे लगता है, सही मायने में एक राष्ट्र के तौर पर भारत की गरिमा बनेगी।
गाँधीजी सिर्फ भारत की विरासत नहीं है। वे करीब-करीब पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत है। ऐसा भी लगता है, किसी-किसी देश में उन्हें भारत से ज्यादा आदर मिलता है। खैर, गाँधीजी का पूरा जीवन ही ‘सत्य की तलाश’ थी, जो कि अपने आप में ईश्वर की खोज के बराबर है।
‘‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’’ गाँधीजी ने ऐसा सिर्फ कहा ही नहीं, अपनी संपूर्ण जीवन शैली से चरितार्थ भी किया। गाँधीजी ने अपने प्राण से देश की जिस आज़ादी की कीमत चुकायी थी, उस आज़ादी के विविध पहलुओं को सभी नागरिकों को मुहैया कराना ज़ाहिर तौर पर अब बहुत बाकी है।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी की शहादत के इस पुनीत मौके पर भारत देश के नागरिकों और शासन-प्रशासन के पदाधिकारियों द्वारा यह संकल्प किया जाना चाहिए कि महात्मा की दिखायी हुई ‘अहिंसा और सत्य’ की राह से ही चलेंगे। साथ ही, सभी देशवासी आज़ाद भारत की बेहतरी की दिशा में सदैव लगे रहें। महात्मा के प्रति सच्ची श्रंद्धांजलि, बस, यही होगी। महात्मा गाँधी की जय।
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), ‘https://drmdthomas.blogspot.com’ (p) and ‘www.ihpsindia.org’ (o); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p) और दूरभाष: 9810535378 (p).
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